“मैं आमिर ख़ुसरों का बहुत प्रशंसक हूँ और उनको सुनता भी हूँ. उन्होंने ब्रज के गाओं में घूमकर ब्रज की लड़कियां जो गाती थीं उसे ही संग्रहित करके जो लिखा है वो ही सारी दुनिया में कव्वाल गाते हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैं गवर्नर हाउस में रात के दो बजे तक या तो हरियाणा की रागनी सुनता हूँ या आमिर ख़ुसरों सुनता हूँ. उससे मुझे ताकत और जानकारी मिलती है.” यह बातें कहीं मुख्य अतिथि बिहार के महामहिम राज्यपाल श्री सतपाल मल्लिक ने. अवसर था आज दिनांक, 8 मई, पटना, गांधीमैदान स्थित ए.एन.सिन्हा इंस्टीच्यूट में प्रो.(डॉ.) लक्ष्मी सिंह की पुस्तक ‘बिहार के पर्व-त्योहारों के गीत’ के लोकार्पण का. कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई उसके पश्चात् हुआ स्वागत भाषण. फिर मंच पर अन्य विशिष्ठ अतिथियों की मौजूदगी में महामहिम राज्यपाल द्वारा प्रो. (डॉ.) लक्ष्मी सिंह जी की पुस्तक का लोकार्पण सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता की पाटलिपुत्र विश्वविधालय के कुलपति प्रो.(डॉ.) गुलाबचंद राम जायसवाल ने, जबकि मंच का सफल संचालन किया कलाकार पल्ल्वी विश्वास ने, वहीँ धन्यवाद ज्ञापन किया वातायन प्रकाशन के निदेशक राजेश शुक्ल ने. कार्यक्रम के शुरुआत में ही लेखिका की इस पुस्तक में संग्रहित कुछ चुनिंदा गीतों पर अपनी मोहक प्रस्तुति दी जानेमाने गायक सत्येंद्र संगीत ने.
महामहिम राज्यपाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि “मैंने लक्ष्मी जी की पुस्तक की प्रस्तावना पढ़ी, गोवा की गवर्नर डॉ. मृदुला सिन्हा जी ने जो इनके संदर्भ में लिखा है वो भी पढ़ा. और आपने लिखा है कि विदाई के वक़्त आपकी माता जी बहुत बीमार थीं और शादी के बाद विदाई के वक़्त उन्होंने आपसे यही कहा कि ‘तोहे जो गीतों का ज्ञान मिला है वही तुम्हारी थाथी है, उसी को तुम अपना दहेज़ समझना और उसको आगे बढ़ाना.’ और आपने ऐसा ही किया भी. कोई भी समाज अपनी जमीं से कटकर जिन्दा नहीं रह सकता. इसी तरह जो इन गीतों में है हमारे समाज, हमारे मुहावरे, हमारे तीज-त्यौहार सबकुछ इनसे हमे जानने को मिलता है. इस पुस्तक में जो लोकगीत हैं उनमे सारी दुनिया का ज्ञान है, हमारे जीवन का सारा दर्शन है. इनमे शादी के गीत हैं जो हमारे नहीं बल्कि प्रभु राम और सीता की शादी के गीत हैं जो सदैव गायें जायेंगे. आपकी पुस्तक में मैंने पढ़ा कि छठ के गीत में एक महिला आराधना करती है और सूर्य की आराधना करते हुए पहले हल मांगती है, फिर बैल मांगती है, फिर हलवाहा मांगती है, फिर बीज मांगती है और उसके बाद वो अपने पति की खैरियत मांगती है. तो सूर्य ये कहते हैं कि ‘ये मुकम्मल औरत है, ये अपने सारे परिवार और परिवार की जरूरतें मांग रही है इसलिए मैं इसको वरदान देता हूँ.’ मैं कह सकता हूँ कि बहुत अमीर जो आदमी होते हैं वो अपने मकान-दुकान, पैसा अपने बच्चों के लिए छोड़कर जाते हैं लेकिन समाज को कुछ नहीं देकर जाते हैं. आपने बिहार के समाज को इस पुस्तक के रूप में बहुत बड़ी संपत्ति दी है.”
पुस्तक में ढ़ाई पेज की भूमिका गोवा की राज्यपाल और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मृदुला सिन्हा ने लिखी है जिनमे उन्होंने लेखिका की तारीफ में कहा है कि “मुझे प्रसन्नता है कि डॉ. लक्ष्मी सिंह ने ‘बिहार के पर्व त्योहारों के गीत’ शीर्षक से लगभग 400 पृष्ठों की पुस्तक बनाई है, जिसमे बिहार के सभी व्रत-त्योहारों के गीतों के साथ-साथ सीता-राम विवाह गीत के माध्यम से विवाह संस्कार, पूजा-अर्चना, विभिन्न रस्मों में गाये जानेवाले गीत, ऋतुओं के अनुसार मनाये जानेवाले पर्व-त्योहारों के गीत और देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का भी संकलन किया है. इस पुस्तक के लेखन में लगे उनके श्रम का मैं सम्मान करती हूँ और उनकी लेखनी को आशीर्वाद देती हूँ.”
लेखिका प्रो.(डॉ.) लक्ष्मी सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि ” माँ गीत सिखाती थीं, मैं उनके साथ गाती भी थी. माँ कहीं भी नया गीत सुनती तो मुझसे लिखवाती थीं. बचपन की यह आदत मेरे जीवन में रच-बस गयी. मैं कल्पना करती, जब पढ़-लिखकर लायक बन जाउंगी तब गीतों के संग्रह को पुस्तक-रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करुँगी. और आज वह सपना परिजनों, गुरुजनों एवं मित्रों के सहयोग से पूरा हुआ.”
वहीँ मंच पर उपस्थित विशिष्ठ अतिथि पटना दूरदर्शन की सहायक निदेशक रत्ना पुरकायस्थ जी ने कहा कि “लोक परम्परा को जीवित रखने के लिए लक्ष्मी जी ने बहुत बड़ा काम किया है, क्यूंकि आज ये हर घर से लुप्त होते जा रही है. शादी ब्याह हो, या फिर बच्चे का जन्म संस्कार हो तो हमारे लोकगीतों में ये सारा कुछ रचा-बसा है. लक्ष्मी जी शिष्या रही हैं पद्मश्री लोकगायिका स्व. विंध्यवासिनी देवी की जो आकाशवाणी में काम करती रही थीं. सौभाग्य की बात है कि जब वे वहां नौकरी करती थीं उस दौरान मैं भी वहां आकाशवाणी में विंध्यवासिनी जी के साथ काम की हूँ. उनके गीतों में जमीं से जुड़ी हुईं बातें होती थीं. तो उनकी जो शिष्या लोग रही हैं उनमे लक्ष्मी जी भी एक हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत ही दुरूह कार्य है क्यूंकि लोकगीतों का संग्रह करना कोई आसान काम नहीं है. आज हमारे बच्चों के इर्द-गिर्द से संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं तो ये लोकगीत जो है उन्हें जीवित रखेगा और मुझे लगता है कि हर घर में जब शादी-ब्याह होता है तो लोग ज्यादा इसको खोजते हैं. सोहर गीत जो होते हैं या फिर पर्व त्योहारों की बात करें तो चाहे शिवरात्रि हो या छठ पूजा सबमे हमारे लोकगीत शामिल हैं. और मैं मानती हूँ कि लोकगीत अवसाद को भी दूर करता है. आजकल जो मनुष्य अकेलापन महसूस करता है वो अगर लोकगीत या लोकधुन सुने तो उसके अंदर का डिप्रेशन भी खत्म होने लगेगा. आकाशवाणी और दूरदर्शन हमेशा से लोक परम्परा को जिन्दा रखने के लिए कार्य कर रहे हैं तो जब ऐसे कलाकार रहेंगे तो हमारी आकाशवाणी और दूरदर्शन बहुत ही गौरान्वित महसूस करेंगे.”
अंत में वातायन प्रकाशन के निदेशक राजेश शुक्ल ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि “अपने जीवन के चार दशकों तक निरंतर बड़े जतन से ऐसे बहुमूल्य गीतों का संचय कर डॉ. लक्ष्मी सिंह ने एक ऐतिहासिक महत्व का काम किया है. यत्र-तत्र बिखरे इन कालातीत लोकगीतों को चुन-चुनकर आपने जिस गुलदस्ते का सृजन किया है, उसकी खुशबू से हमारा लोक-जीवन निरंतर सुवासित होता रहेगा.”