10 वीं, रविंद्र बालिका विधालय की दिव्या तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी है. बचपन से ही मम्मी रेखा देवी को गाते देखा घर में तो खुद भी गाने लगी. एक्टिंग-डांसिंग का भी शौक रखनेवाली दिव्या पहली बार स्टेज पर 3 साल की उम्र में ही गायकी प्रस्तुत कर चुकी है. उनके घर में भाई-बहन, पापा-मम्मी सभी को शौकिया गाने का शौक है. उनकी मम्मी रेखा देवी क्लासिकल संगीत में फोर्थ ईयर तक पढ़ाई की हुई हैं. तो हुआ यूँ कि दिव्या का बड़ा भाई जब 7 वीं में था तो भारत विकास परिषद् की तरफ से 2007 में आयोजित सिंगिंग कॉम्पटीशन में हिस्सा लेने अपने स्कूल से चुनकर रुड़की गया था. उसके पहले जब पटना के चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स में उसका ऑडिशन चल रहा था तो वहीँ नन्ही दिव्या जो जजों के पास में बैठी थी देखकर बोली -भईया गा रहा है, मैं भी गाउंगी.’ यह सुनकर जो एनाउंस कर रहे थें वो उसे स्टेज पर बुला लिए. फिर प्रोग्राम के बीच में उन्होंने दिव्या को इंट्रोड्यूस कराते हुए ऑडियंस से कहा कि ‘आपके सामने इस नन्ही कलाकार को पेश कर रहा हूँ जो देशभक्ति गाना गायेगी.’ और दिव्या ने स्टेज पर पहली बार माइक हाथों में लेकर ‘कर चले हम फ़िदा जानोतन साथियो….’ गाना गाया तो फिर सारी ऑडियंस खड़े होकर तालियां बजाने लगी. वहां मौजूद मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा ने खुश होकर दिव्या को 100 रुपया देते हुए कहा कि ‘लो बेटा, चॉकलेट खा लेना.’ वहां से दिव्या के मम्मी-पापा बच्चों को लेकर जैसे निकलें वहां जितने ऑडियंस के रूप में गार्जियन आये हुए थें सभी पूछने लगें- ‘ये आपकी बेटी है, कहाँ पढ़ती है, इतनी छोटी है कैसे इतना बढ़िया गा रही है?’ बस वहां से दिव्या की गायकी का दौर शुरू हो गया. फिर नन्ही सी उम्र से ही छोटे-बड़े कई प्रोग्राम में वह गाने लगी. कहीं भी कम्पटीशन होता मम्मी साथ लेकर जातीं.
2014 में सोनी इंटरटेनमेंट पर आनेवाले इंडियन आइडल जूनियर में दिव्या बिहार से सेलेक्ट होकर कोलकाता पहुंची तब फर्स्ट राउंड में ही अनसेलेक्ट हो गयी थी. रियलिटी शो की पहली बड़ी प्रतियोगिता थी इसलिए वह बहुत नर्वस हो गयी थी. लेकिन फिर भी हार नहीं मानी और कुछ समय बाद पूरी तैयारी एवं कॉन्फिडेंस के साथ वापसी की.
अप्रैल, 2015 में जब दिव्या ८ वीं क्लास में थी किलकारी से जुड़े होने की वजह से उसे पता चला कि पटना का दैनिक हिंदुस्तान अख़बार रॉकस्टार कम्पटीशन करा रहा है. फर्स्ट राउंड में 100 बच्चों को चुनना था जिसमे दिव्या आसानी से सलेक्ट हो गयी. फिर 100 में से 12 बच्चों का चयन हुआ जिसमे चुनकर दिव्या फ़ाइनल राउंड में पहुँच गयी. कहा गया था कि जो विनर होगा वो गायक अभिजीत भट्टाचार्या के साथ स्टेज पर ड्यूट सॉन्ग गायेगा. मास्टर सलीम जी के सूफी सॉन्ग गाकर दिव्या विनर बनी और दिव्या के रूप में बिहार को पहला ‘रॉक स्टार’ मिल गया. फिर अभिजीत जी के साथ ड्यूट में उनका ही गाना ‘मैं रोऊँ या हँसूँ, करूँ मैं क्या करूँ…’गाने का उसे मौका मिला.
इसके बाद वह ‘द वॉइस किड्स’ में 500 बच्चों के बीच से चुनकर ऑडिशन के लिए पहली बार मुंबई के लिए रवाना हुई जहाँ 4 महीना मम्मी के साथ रही. पूरे इंडिया से चुनकर आये बच्चों से मिलने का उसे मौका मिला.
अलग-अलग लैंग्वेजेस, सबकी अलग-अलग आइडेंटिटी, तो ऐसे में बहुत कुछ देखने-समझने का मौका मिला. खुद कितने पानी में है यह भी जानने और खुद को परखने का उसे मौका मिला. पटना के गाँधी मैदान में होनेवाले बसंतोत्स्व में लगातार दो साल 2016 -2017 में पूरे बिहार के बच्चों को पछाड़ते हुए दिव्या फर्स्ट आयी थी. 2016 में एन्ड टीवी पर आनेवाले सिंगिंग रियलिटी शो ‘द वॉइस किड्स सीजन-1’ में भाग लेकर बैटल राउंड तक पहुंची थी. पिछले साल दिव्या बाल श्री अवार्ड के लिए जिला स्तर तक पहुंची थी फिर इस बार स्टेट लेवल के लिए इक्जाम दे चुकी है जिसके रिजल्ट के आधार पर ही नेशनल लेवल के लिए चयन होगा. अभी एक साल से वह बाल भवन किलकारी में संगीत सीख रही थी. उसके पहले मम्मी ही घर पर सिखाती थीं. सबसे पहले दिव्या ने गुरु हीरा लाल मिश्रा जी से संगीत की तालीम ली थी. अभी वह मैट्रिक परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई है , फिर इक्जाम के बाद ही वह संगीत की पढ़ाई शुरू करेगी.
दिव्या के साथ पहले प्रॉब्लम थी कि सिर्फ गजल और ठुमरी गायन में वह पहचान बनाने की सोच रही थी. लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है. दिव्या को एक प्लेबैक सिंगर बनना है, इसलिए अब उसे जिस तरह का भी सॉन्ग मिलेगा वो उसमे ही ढल जाएगी. लेकिन सबसे ज्यादा इंट्रेस्ट उसे सूफी सॉन्ग गाने में है. अभी हाल ही में बिहार में 5 लड़कियों का एक सूफी बैंड तैयार हुआ है जिसमे दिव्या और रानी लीड करती हैं और बाकी तीन लड़कियां कोरस में हैं. इस सूफी बैंड का नाम है ‘महब्बा’ जिसका तात्पर्य होता है मोहब्बत. ‘महब्बा’ के जन्म के बारे में दिव्या बताती हैं कि ‘जब हमलोग बीजेपी में कला संस्कृति प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक वरुण सिंह जी के सम्पर्क में आएं तो उन्होंने कहा कि कुछ ऐसा तुमलोग करो कि एक अलग पहचान बने. एकल लोगगीत या फ़िल्मी गीत तो बहुत लोग गाते हैं. कुछ ऐसा गाओ जो हमलोग नहीं सुने हैं. फिर हमने सूफी गाने की अपनी टीम तैयार की और ‘महब्बा’ के नाम से अब वह लोकप्रिय भी हो रही है. ‘महब्बा’ का पहला परफॉर्मेंस हुआ 2017 के दशहरा महोत्सव में. फिर उसके बाद हुआ सोनपुर मेले में.’
दिव्या के पापा श्री हरेंद्र कुमार पाठक जो सहारा इंडिया में कैशियर के पद पर हैं ‘बोलो ज़िन्दगी’ से कहते हैं ‘मैंने शुरू से ही दिव्या को नोटिस किया है. छोटी सी उम्र में ही वह रेडियो खोलते ही एकदम शांत होकर एकाग्रचित भाव से सुनने लगती थी. उसका गाने की तरफ बहुत रुझान रहने लगा. तभी हमलोगों ने विचार किया कि इसे सिंगिंग में आगे बढ़ाना है. जब दिव्या तीसरी क्लास में थी तभी इसके लिए हारमोनियम खरीदकर लाएं थें और कहे थें- आप हारमोनियम पर टे-टे पों-पों करो और हमें गाना सुनाओ. फिर दिव्या ने भी अपने आप को प्रूव किया. मैंने भी निश्चय किया है कि मेरी बेटी जहाँ तक संगीत में जाना चाहेगी चाहे वो मुंबई हो या सिंगापुर हम हर तरह से सपोर्ट करेंगे. बचपन से लेकर अबतक दिव्या को जहाँ भी, जिस भी कॉम्पटीशन में हिस्सा लेना हो मैं सिर्फ आर्थिक सपोर्ट करता हूँ लेकिन इसकी माँ का योगदान ज्यादा है जो शारीरिक सपोर्ट करती हैं.’
अबतक कई संस्थाओं द्वारा आयोजित संगीतमय कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुकी दिव्या का 14 नवम्बर, बाल दिवस और 1 जनवरी के दिन दूरदर्शन बिहार के ‘बिहार बिहान’ कार्यक्रम में सोलो परफॉर्मेंस हो चुका है. दिव्या रेडियो के 98. बिग एफ.एम पर भी कार्यक्रम दे चुकी है.