पुस्तक ‘राग अशेष’ के लोकार्पण के साथ साहित्य को मंच से उतरकर जीवन में घुलने देने की हुई वकालत

पुस्तक ‘राग अशेष’ के लोकार्पण के साथ साहित्य को मंच से उतरकर जीवन में घुलने देने की हुई वकालत
पुस्तक लोकार्पण में मौजूद मुख्य एवं विशिष्ठ अतिथिगण

“ये धड़कते हैं मेरे अंदर क्यूंकि जब भी इन्हें पढ़ता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है इनकी संवेदना बहुत ही गहराई के साथ बोल रही है. ये अपनी रचनाओं में केवल समस्या ही नहीं गिनाते समाधान भी देते हैं.” यह बातें 28 फरवरी, हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में, पटना के ए.एन.सिन्हा इंस्टीच्यूट में, समाजसेवी और साहित्यकार डॉ. कुमार अरुणोदय की पुस्तक ‘राग अशेष‘ का लोकार्पण करते हुए सुप्रतिष्ठ कवि डॉ. सुरेश अवस्थी ने कही. डॉ. अवस्थी ने कहा कि, “कुमार अरुणोदय समाज और साहित्य के लिए क्या कर रहे हैं इसपर हम आज कोई चर्चा नहीं करेंगे. यहाँ हम इनकी पुस्तक ‘राग-अशेष’ को लेकर इनके बारे में कुछ कहना चाहेंगे. इस पुस्तक में 62 छोटे-छोटे निबंध संग्रहित हैं. जिस विषय को उन्होंने छुआ है उसे कम शब्दों में बहुत गंभीर संवेदना के साथ छुआ है. मैं मानता हूँ वो रचनाकार बड़ा होता है जिसका अनुभव संसार बड़ा होता है, जिसकी संवेदना बहुत गहरी होती है, जिसकी भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी होती है. मुझे गर्व हो रहा है कि कुमार अरुणोदय में ये सारी खूबियां मौजूद हैं. इनको अनुभव इनके घुमक्क्ड शैली से आता है. छोटी-छोटी घटना को अपनी संवेदना से ऐसा जोड़ देते हैं कि वह बीती घटना फिर से सजीव हो जाती है.”
बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हुए देश के मशहूर कार्टूनिस्ट एवं लेखक आबिद सुरती ने कहा कि ” कुमार ने यह ‘राग अशेष’ अपनी माता जी को अर्पण कि है. यहाँ मुझे मेरी अम्मी याद आ गयी. विषय इसी किताब के संदर्भ में है कि उनके आखिरी दिन थें, वे पैरेलैटिक हो गयीं थीं. बार-बार मुझसे ये सवाल करती रहीं कि आबिद मैंने कोई गुनाह नहीं किया जिंदगी में. 5 बार नमाज पढ़ती रही, सारे रोजे रखें, सबकुछ किया मैंने ईमानदारी के साथ और मैं पैरेलैटिक कैसे हो गयी. इसका जवाब मेरे पास नहीं था. और ढूंढने पर भी जवाब मुझे कहीं मिला नहीं. इस्लामिक किताब में यही था कि उपरवाले कि मर्जी से ही सब होता है. लेकिन जिसे कंवेंसिंग रिप्लाई कहते हैं वो मुझे गीता में मिली. वो ये थी कि ये कोई एक जन्म नहीं है बल्कि जन्म-जन्म का सिलसिला है और हम हमारे पाप एवं पुण्य पिछले जन्म से लेकर इस जन्म में आते हैं, उसका हिसाब तो चुकता करना पड़ता है. माने या ना माने मगर जवाब कंवेंसिंग था. मैंने अम्मी को सुनाया और दो दिन बाद उनका इंतकाल हो गया. अब आते हैं इस किताब पर कि जैसे चर्मकार किसी शख्स को देखता है तो देखने की शुरुआत वो जूते से करता है फिर धीरे-धीरे ऊपर देखता है. उसी तरह मैं एक चित्रकार हूँ तो मैंने भी शुरुआत की इस पुस्तक की डिजायनिंग देखने से. पैकेजिंग इतनी बढ़िया लगी कि मेरा जी चाहा इसे खोलकर देखूं. इसमें भी वही आत्मा-परमात्मा की सदियों से चली आ रही बातें हैं लेकिन नए ढंग से, नए अंदाज में. तो एक जुमले में मैं अरुणोदय को यही कहूंगा कि एक बिहारी सौ पर भारी.”

वहीं विशिष्ठ अतिथि कवियत्री भावना शेखर ने अपने सम्बोधन में कहा कि “अरुणोदय जी के बारे में क्या कहूं, सोशल साइट्स पर तो उनके हज़ारों मुरीद हैं जो उन्हें पढ़ते हैं. इनकी पहली पुस्तक जो थी उसके अक्षर-अक्षर से मैं गुजरी हूँ. और वो इन्होने अपनी माँ के बारे में जो लिखा तो मुझे लगता है जिस व्यक्ति की सारी संवेदनाएं माँ के प्रति इस तरह से उमड़ती हैं वह दर्शाती है कि ये एक रोल मॉडल हैं हमारी आज की पूरी युवा पीढ़ी के लिए.”

उसके बाद बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह जब मंच पर अपना वक्तव्य देने आएं तो कुछ चुटीले अंदाज में अपनी बातें कहकर पूरी सभा को हास्य रंग में रंग दिए. उन्होंने कहा कि “इन साहित्य के दिग्गजों के बीच मैं एक अकेला पुलिसवाला हूँ, जैसे बत्तीस दाँतों के बीच में एक अकेला जीभ होता है. जीभ थोड़ा इधर-उधर चला तो कब दांत लग जायेगा पता नहीं चलेगा. लेकिन जीभ के अपने मायने हैं. वही बताएगा कि स्वाद कैसा है. तो इनकी लेखनी कैसी है इसकी सही मायने में जाँच-पड़ताल कोई पुलिसवाला ही कर सकता है. ‘गागर में सागर’ वाली कहावत इस पुस्तक में देखने को मिलती है. मैं अनुरोध करना चाहूंगा कुमार जी से कि आपने हर विषय पर लिखा है थोड़ा वर्तमान परिपेक्ष्य में पुलिस कैसी है इसे भी वर्णित करें. क्यूंकि समाज की नज़र में पुलिस केवल आलोचना की पात्र है जबकि बुरे वक़्त में लोग पुलिस के ही पास जाते हैं. आपलोग साहित्यकार हैं तो वर्तमान पुलिस की अच्छी छवि को भी अपने साहित्य के माध्यम से समाज के सामने लाएं.”

अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने लेखक को कोमल भावनाओं से युक्त एक विनम्र और भावुक कवि बताया. उन्होंने कहा कि “डॉ. अरुणोदय एक संवेदनशील और संभावनाओं से संपन्न रचनाकार हैं. गद्य और पद्य दोनों में ही इनकी प्रतिभा मुखर होकर प्रकट होती है. लेखन-कार्य को समय दे पाएँ तो साहित्य-संसार इनके अवदानों से लाभान्वित हो सकता है. लोकार्पित पुस्तक में जीवन के विविध पक्षों और मूल्यों पर लेखक के ऊर्जा-संपन्न विचारों का परिचय और मार्ग-दर्शन मिलता है.”

सभा को सम्बोधित करते हुए ‘राग अशेष’ के लेखक डॉ.कुमार अरुणोदय

अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए पुस्तक के लेखक डॉ. कुमार अरुणोदय ने कहा कि “महत्वपूर्ण यह नहीं कि ‘राग अशेष’ क्या है, मेरे लिए महत्वपूर्ण यह है कि अगर आपने कुछ किया है, कुछ लिखा है तो उसकी समीक्षा होनी चाहिए. हमने लिख दिया वो गलत भी हो सकता है. हम सभी अभिभावकों को एक चिंता होती है कि जो नयी पीढ़ी के बच्चे आ रहे हैं वो विमुख हो रहे हैं अपनी जड़ से, अपनी संस्कृति से, अपने साहित्य से. यह कैसे कह दें कि दोष उन बच्चों का है, दोष तो समाज के हम अभिभावकों का है कि हमने उन्हें ठीक से परोसा नहीं. जैसे घर में हम अच्छा स्वास्थवर्धक भोजन बनाकर अपने बच्चों को परोसते हैं उसी तरह क्या हम बढ़िया साहित्य नहीं परोस सकते. गलतियां तो हम कर रहे हैं. हमने उन्हें ऑप्शन दे दिया कि छोड़ो साहित्य, जर्मन पढ़ो, फ्रेंच पढ़ो, अंग्रेजी पढ़ो. तो सिर्फ जर्मन और अंग्रेजी पढ़नेवाले बच्चों के मन में प्रेम कहाँ से आएगा, सानिध्य कहाँ आएगा उनके जीवन में. वही युवा जब आक्रोश में आता है, कुपित होता है व्यवस्था से तो हमने यह कहना शुरू कर दिया कि आजकल के जो बच्चे हैं ना अनुशासनहीन हो गए हैं, संस्कार बिलकुल खत्म हो गया. हमने युवाओं को राजनीति सिखाई है तो वे भी राजनीति की बातें करेंगे. जिस दिन हमारा युवा राजनीति को छोड़कर राष्ट्रनीति की बात करना शुरू कर देगा वो अपने आप को साहित्य एवं संस्कृति में डूबो लेगा. जबतक साहित्य मंच से नहीं उतरेगा तबतक साहित्य का कुछ नहीं किया जा सकता. साहित्य को मंच से उतरना होगा, जीवन में आना होगा.”

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डॉ. अमूल्य कुमार सिंह, सूरज सिन्हा, डॉ. सी. के. सिंह, शैलेंद्र कुमार सिंह, विपिन कुमार तथा कृष्ण चंद्र बाजपेयी ने भी अपने विचार व्यक्त किए. इस अवसर पर दूरदर्शन पटना की कार्यक्रम अधिशासी रत्ना पुरकायस्था, कार्टूनिस्ट पवन, प्रो. वासुकीनाथ झा, कुमार अनुपम, डॉ. मेहता नगेंद्र सिंह, समीर परिमल, कृष्ण रंजन सिंह, बच्चा ठाकुर, कवयित्री अनुपमा नाथ, शालिनी पांडेय, गणेश झा, राज कुमार प्रेमी, शैलेन्द्र झा ‘उन्मन’, जय प्रकाश पुजारी, शुभचंद्र सिन्हा, राज किशोर झा, प्रो. सुशील कुमार झा, पंकज प्रियम समेत सैकड़ों की संख्या में विद्वान साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे.
मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया. मंच संचालन करते हुए डॉ. शंकर प्रसाद ने बीच-बीच में शेरो-शायरी से सभा में बैठे दर्शकों का मन-मिजाज तारो-ताजा रखा. “ना था कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुदा होता…डूबोया मेरे बोलने ने, मैं बोलता तो क्या होता.” ग़ालिब के इस शेर को सुनाने के साथ डॉ. शंकर प्रसाद ने कहा कि “हमारा असितत्व में आना ही दुनिया का संकट है और हम जिस अस्तित्व में आये हैं कोई सुलेमान बन गया, कोई हनुमान बन गया तो कोई अरुणोदय बन गया.” फिर तो वाह-वाह और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सभागार गूंज उठा.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के एडिटर को अपनी पुस्तक भेंट करते डॉ. कुमार अरुणोदय

 

 

 

 

 

कार्यक्रम खत्म होने के बाद ‘बोलो ज़िन्दगी’ के एडिटर राकेश सिंह ‘सोनू’ जो फेसबुक पर पोस्ट किये आमंत्रण कार्ड को देखकर आये थें, लेखक कुमार अरुणोदय से मिले और उन्हें बधाई देते हुए जब यह कहा कि “पुस्तक विमोचन हो जाने के बाद कार्यक्रम में आने की वजह से मुझे आपकी पुस्तक नहीं मिल पायी.” फिर क्या था कुमार अरुणोदय ने बड़ी ही सहजता से गले मिलते हुए अपनी पुस्तक की एक प्रति अपार स्नेह के साथ उन्हें खुद अपने हाथों से भेंट की. और इसी के साथ उन्होंने यह भी एहसास करा दिया कि हाँ वाकई साहित्य मंच से उतरकर आम जीवन में चला आया है.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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