बहस
By: Rakesh Singh ‘Sonu’
हमारी बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में देखा देखी का चलन बहुत पुराना रहा है. वह चाहे पुरानी हिट फिल्मों का रीमेक ही क्यों न हो. फिल्ममेकर भी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि पुरानी बोतल में नयी शराब परोसना फायदे का सौदा है. उन्हें इस बात की फ़िक्र नहीं रहती कि पहले की फिल्म की तुलना में रीमेक फिल्म बेहतर साबित हो पायेगी या नहीं बल्कि उन्हें मतलब होता है दर्शकों को इसी बहाने अट्रैक्ट कर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन बढ़ाये जाने से. दर्शक भी पुरानी हिट फिल्म के नाम के चकाचौंध तले रीमेक फिल्म देखने चला आता है. यहाँ सवाल उठता है कि एक बार जो खूबसूरती परोसी जा चुकी है, उसी खूबसूरती को प्लास्टिक सर्जरी के जरिए क्या फिर से परोसा जाना सही है? आखिर रीमेक की ज़रूरत ही क्यों पड़ी, क्या वाकई फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी स्टोरी और कॉन्सेप्ट का अकाल पड़ गया है? तो आइये जाने इस विषय पर एक्सपर्ट लोगों की राय क्या है …….
चेतन पंडित, फिल्म एवं टीवी अभिनेता – इसमें कोई बुराई नहीं है. उल्टे यह तो जोखिम का काम है जो हर किसी के वश की बात नहीं है. रीमेक इसलिए बनते हैं कि हर स्टोरी को कई एंगल से देखा जाता है. यहाँ पर ऐसे हज़ारों लोग होंगे जिन्होंने अबतक पुरानी ‘अग्निपथ’ भी नहीं देखी होगी. लेकिन नयी ‘अग्निपथ’ को देखने के बाद हो सकता है वो जिज्ञासावश पुरानी ‘अग्निपथ’ को देखें. अब जहाँ तक रीमेक को पसंद करने की बात है तो यह दर्शकों पर छोड़ देना चाहिए. आपको बता दूँ की मुझे 5 क्रिटिक्स ऐसे मिले जिन्हें नई ‘अग्निपथ’ पसंद नहीं आई. इस बात पर मैंने फिल्म के प्रोड्यूसर करण जौहर से कहा कि या तो आप फिल्म पूरे हिन्दुस्तान के लिए बनाओ या फिर इन पांच क्रिटिक्स के लिए. मेरे ख्याल से कोई भी फिल्म हो वह ऑडियंस को हिट करनी चाहिए.
संजय बिष्ट,प्रोड्यूसर, इंडिया टीवी, दिल्ली – एक सर्वे किया जाये तो ये साफ़ हो जायेगा कि जनता रीमेक से ज्यादा सीक्वल को पसंद करती है. रीमेक किसी ऐसी फिल्म का बनाया जाता है जो अपने ज़माने की कालजयी फिल्म होती है. मगर ये भी सच है कि ऐसी सम्पूर्ण फिल्म को भला रीमेक से कैसे पूर्ण किया जा सकता है. फ़िल्मी इतिहास देखा जाये तो कुछ रीमेक फिल्मों के अलावा ज्यादातर रीमेक ने मुँह की खाई है. पुराने समय की सुपरहिट फिल्म का रीमेक बनाना तो समझ में आता है मगर आजकल औसत दर्जे की फिल्मों का रीमेक बनाना एक मज़ाक सा लगता है.
मोहन अय्यर, बॉलीवुड फिल्म पी.आर.ओ., मुंबई – मेरे ख्याल से रीमेक बननी ही नहीं चाहिए क्यूंकि इससे ओरिजनल फ्लेवर खत्म हो जाता है. नई फिल्मों में आज के यंग जेनरेशन को ज्यादा मौका मिलना चाहिए. नया टैलेंट और नया कॉन्सेप्ट होना चाहिए. लेकिन रीमेक की वजह से नए राईटर को चांस नहीं मिल पाता. हमारी फिल्म इंडस्ट्री भी भेड़चाल फॉलो करती है. जो पुरानी हिट फिल्मों का रीमेक बनाते हैं उनको कॉन्फिडेंस नहीं है, राइटर्स को पैसे देने नहीं हैं, हैल्दी थॉट नहीं है. ऐसे में वे रीमेक का शॉर्टकट फॉर्मूला ही तो अपनाएंगे.
विजय कुमार मिश्रा, युवा फिल्म निर्देशक एवं स्क्रीप्ट राइटर, मुंबई – पुरानी फिल्मों का रीमेक बनाने में कोई बुराई नहीं है. पहले भी कई सारी रीमेक फ़िल्में बन चुकी हैं जिनमे से कुछ लोगों को पसंद आई तो कुछ को लोगों ने रिजेक्ट कर दिया. मसलन राजश्री प्रोडक्शन की ‘नदिया के पार’ की रीमेक थी ‘हम आपके हैं कौन’ और ये फिल्म आज भी ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर फिल्मों की लिस्ट में से टॉप पर है. वहीँ सुभाष घई की ‘हीरो’ का रीमेक जिसे सलमान खान ने प्रोड्यूस किया लेकिन लोगों को पसंद नहीं आयी. तो मेरा यही कहना है कि रीमेक बनाने में कोई बुराई नहीं है अगर उसे सही तरीके से बनाया जाता है. रीमेक में भी नयापन होना बहुत ज़रूरी है. स्टोरी और स्क्रीनप्ले में पॉसिबल चेंजेस बहुत ज़रूरी है जो पुरानी चीज को नया कर देते हैं.
सविता कुमारी,रिपोर्टर, दैनिक हिन्दुस्तान,पटना – मैं मानती हूँ कि रीमेक नहीं बननी चाहिए क्यूंकि उस पुरानी हिट फिल्म के साथ जो फीलिंग जुड़ी रहती है वो मर जाती है. अब पुरानी सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ को भला ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ के रूप में कौन पचा पायेगा..! पुरानी ‘उमरांवजान’ में रेखा की शोख अदाओं का मुकाबला क्या नई ‘उमरांवजान’ की ऐश्वर्या कर पाएंगी..! रीमेक देखने गया दर्शक जब ऐसे में पुरानी ओरिजनल फिल्म के एक्टरों की तुलना नए एक्टरों से करने लगे तो फिर फिल्म खत्म होने से पहले ही पूरी फिल्म का मज़ा भी खत्म हो जाता है.