By: Rakesh Singh ‘Sonu’
मेरी पहली फिल्म थी भोजपुरी भाषा की ‘रखिह लाज अचरवा के’ जो 1996 में रिलीज हुई थी. इसके निर्देशक थे कुमार विमल. इस फिल्म की शूटिंग 1992 में हुई थी.
जब बिहार में मैं अपना खुद का गोस्वामी फोटो स्टूडियो चलाता था, तब एक दिन फोटो बनवाने के सिलसिले में मैं मुजफ्फरपुर शहर गया, जहाँ मेरी मुलाक़ात निर्देशक कुमार विमल जी से हो गयी. उन्होंने मुझे तुरंत अपनी भोजपुरी फिल्म में ऑफर दे दिया और शूटिंग के लिए मुझे हाजीपुर बुलाया. अचानक मिले इस ऑफर से मैं बिलकुल भी नर्वस नहीं था क्यूंकि मैंने थियेटर किया हुआ था. बहुत एकसाईटमेंट थी कि अब मैं हीरो बन जाऊंगा, फिल्म के रिलीज के बाद उन सबको जवाब मिल जायेगा जो मेरा मजाक उड़ाया करते थे. उस वक़्त भोजपुरी फिल्मों में कुणाल जी का दौर था. मैं ये सोचने लगा कि इस फिल्म के बाद मैं भी उनके लेबल का हीरो बन जाऊंगा. शूटिंग पर निकलने से पहले मैंने भगवान की खूब पूजा की, बहुत अगरबत्तियां जलायीं.
तब फिल्म की पूरी टीम हाजीपुर के ‘शीश महल’ होटल में ठहरी हुई थी. मैं जब पहुंचा तो वहाँ मौजूद स्पॉट बॉय को मैंने सीनियर समझकर बात किया. लेकिन उसने मेरी क्लास लेनी शुरू कर दी और टेप-रेकॉर्डर चालू कर ‘ ए हवा…..’ गाने पर मुझे घंटों नचवाया. फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर भी मेरी बेचारगी का लुत्फ़ लेते रहे. लेकिन जब अभिनेता विजय खरे जी के भतीजे ने यह सब देखा तो उन्होंने मुझे बचाया और फिर पूरी टीम से मेरा परिचय करवाया. उसके बाद सबका व्यवहार मेरे साथ सहयोगात्मक हो गया.फिल्म की शूटिंग हाजीपुर में ही केले के बगीचे में शुरू हुई. फिल्म के हीरो थे गोपाल राय जो तांगेवाले का किरदार निभा रहे थे और मैं उनका भतीजा सह असिस्टेंट की भूमिका में था. मेरे किरदार का नाम खालिलवा था जो हकलाता भी था. शूटिंग के दिन तो मेरी भूख ही मर गयी थी. पहले शॉट के वक़्त मैं काफी डरा हुआ था. ऊपर से गोपाल जी के लोगों ने मुझे यह कहकर डरा दिया कि ” अगर टमटम छोड़ दिया……और घोड़ा हिरोईन को लेकर भाग गया तो क्या होगा…? ” लेकिन फिर भी हिम्मत करके मैंने पहला शॉट दिया जो पहले ही टेक में ओके हो गया. मेरे पहले शॉट में ताली भी बजी थी. फिल्म की शूटिंग लगातार 15 दिनों तक चलनेवाली थी. चूँकि मैं घर से बिना बताये यहाँ आ गया था इसलिए घरवालों को इसकी सूचना मैंने बाद में भिजवा दी. फिर क्या था, पिता जी मुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते शीशमहल होटल पहुँच गए. मैंने पिता जी को समझाकर घर भेज दिया कि अब आपका बेटा हीरो बन गया है.
शूटिंग ख़त्म होने पर लौटते समय मुझे महज 15 रुपये ही मिले, पर मेरे लिए तब वो लाखों के बराबर थे. घर पहुंचकर मैंने अपने नोटबुक में वो 15 रूपए बतौर यादगार कई दिनों तक संभाल कर रखें. अपनी पहली फिल्म की शूटिंग के वो यादगार पल मैं कभी भूल ही नहीं सकता.