कोरोना के साइडइफेक्ट और लॉकडाउन से उपजे संकट में आम आदमी का जन-जीवन बहुत बुरी तरफ से प्रभावित हुआ है. जहाँ सरकारी स्तर पर राहत कार्य हो रहे हैं वहीं कई स्वयंसेवी संगठन भी पूरी मुस्तैदी से जन सेवा में जुटे हुए हैं. लेकिन कुछ सामाजिक योद्धा ऐसे भी हैं जिनका ना तो कोई एनजीओ है और ना ही वे किसी संगठन की विशेष मदद ले रहे हैं फिर भी यथासंभव अपने स्तर पर पीड़ितों की लगातार सेवा में लगे हैं. ऐसे नेकदिल इंसान हर शहर, कस्बे, जिले में देखे जा सकते हैं जो किसी रियल हीरो से कम नहीं हैं. बोलो ज़िन्दगी ने पटना के ऐसे ही समाजसेवा से ओत-प्रोत जिन कुछ एक लोगों पर रिसर्च किया है, यहाँ प्रस्तुत है उनकी कहानी… :-
विवेक विश्वास – लाचार- बेसहारों (विक्षिप्तों) के मसीहा के नाम से प्रसिद्धि पा चुके आशियाना-दीघा के विवेक विश्वास एफएमसीजी में सेल्स ऑफिसर हैं इसलिए इनके पास मार्केट का डाटा भी सहजता से उपलब्ध है. अभी ये लॉकडाउन में ऑनलाइन मदद पहुंचा रहे हैं. इनके पास कहीं से भी फोन आता है कि कोई मजदूर, कूड़ा चुननेवाली को बहुत तकलीफ है तो उनतक आटा, चावल, आलू पहुँचवा देते हैं. जैसे हाल ही में पता चला कि कोलकाता से आये मजदूर पटना में फंसे हुए हैं तो उनको स्थानीय दुकान में भेजकर दुकानवाले से बोलकर उन्हें 2-3 दिन का राशन उपलब्ध करा दियें. और फिर दुकानवाले को गूगल पे के माध्यम से पैसा भेज दियें. इसी तरह कई जगह फोनकर के भी मदद पहुंचा रहे हैं. साथ ही साथ अपने आस-पास के असहाय जानवरों का भी ठीक पहले की तरह ही बखूबी ख्याल रख रहे हैं.
आनंद त्रिवेदी – बालू-सीमेंट के रॉ मेटेरियल का व्यापार करनेवाले मीठापुर के आनन्द त्रिवेदी पिछले 7 वर्षों से गरीब विक्षिप्त लोगों को भोजन कराने का नेक काम करते आ रहे हैं. इस लॉकडाउन में लगभग 28 दिन से वे मीठापुर, बस स्टैंड और आरब्लॉक इलाके के रोज खाने-कमानेवाले मजदूरों को खिचड़ी या पूरी सब्जी खिला रहे हैं. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में 40 लोगों को और अभी लगभग 100 लोगों को रोजाना खाना मुहैय्या करा रहे हैं. बहुत से अभावग्रस्त लो मीडिल क्लासवालों को डोर टू डोर एक हफ्ते का कच्चा राशन भी उपलब्ध कराए हैं. यूपी, कानपुर के खोमचेवाले 20 लोगों को भी मदद पहुंचा रहे हैं. यह सेवा आनन्द जक्कनपुर थाना के सरंक्षण में सोशल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए कर रहे हैं. चूड़ा-गुड़ बिस्किट के पैकेट ये जक्कनपुर थाने में बांटने को भी दे आते हैं. आनन्द जी को इस जनहित के कार्य में ग्रामीण कार्य विभाग से रिटायर्ड अपने पिता श्री जितेंद्र त्रिवेदी जी का भी आर्थिक सहयोग मिलता रहता है.
डॉ. मोहम्मद सफ़दर मुस्तफा – नेशनल एंटी क्राइम ह्यूमन राइट्स कौंसिल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सफ़दर मुस्तफा ने प्रधानमंत्री के वक्तव्यों का अनुपालन करते हुए सोशल मीडिया के माध्यम से वैसे व्यक्ति जो बॉर्डर या रास्ते में फंसे हैं और उनका मोबाइल रिचार्ज खत्म हो जाने कि वजह से अपने लोगों से बातें नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिये +91 94310 35900 हॉटलाइन एवं वेबसाइट HTTPS: NACHRCOI.CO.IN जारी करते हुए मुफ्त मोबाइल रिचार्ज की व्यवस्था की. यह सुविधा सिर्फ और सिर्फ आपातकाल में फंसे वैसे लोग जो अपने प्रदेश आते या जाते वक़्त रास्ते में फँस गए हैं, जिनके पास रिचार्ज करने तक का पैसा न हो, जिसकी वजह से वह अपने घरवालों से बात करने में असमर्थ हैं और साथ ही इस सुविधा का लाभ विशेष रूप से डॉक्टर, पुलिस प्रशासन एवं मीडियाकर्मी जो आपातकाल राहत के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं वे भी इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं. इस सहयोग में सभी ऑपरेटर (एयरटेल / बीएसएनएल / जिओ / आईडिया / वोडाफ़ोन एवं टाटा डोकोमो) की व्यवस्था है. इसमे इंटरनेट की नहीं सिर्फ कालिंग कि सुविधा है. अभी तक ये 123 लोगों को एक महीने का रिचार्ज करा चुके हैं.
जब बैंगलोर में एक केस देखा कि कोरोना बचाव कार्य में लगे एक डॉक्टर को डर से उसके मकानमालिक ने निकाल दिया तब मुस्तफा जी ने पटना स्थित अपने ऑफिस में 15 बेड की व्यवस्था की मेडिकल फील्ड के वैसे लोगों के लिए जो रेंट पर रहते हैं और राहत कार्य में लगे होने की वजह से उन्हें अपने फ़्लैट में नहीं जाने दिया जा रहा. इस कंडीशन में अगर कोई आता है तो उसके खाने रहने की फ्री व्यवस्था है. लेकिन इस तरह का पटना में कोई केस अभी तक इनके पास नहीं आया. इन्होंने हाल ही में कुछ बहुत ज़रूरतमंद, बीमार, बुजुर्ग और अकेले रहनेवाले लॉकडाउन में फंसे पटना के 53 लोगों का इन्फॉर्मेशन निकाला है फेसबुक और रिफरेंस के आधार पर. उनके घर का पता करके चावल, आटा, दाल, तेल, चीनी, आलू, चूड़ा, सत्तू, मसाला और बिस्किट प्रशासन के सहयोग से डोर टू डोर भेजेने की व्यवस्था शुरू की है.
शाइस्ता अंजुम – पटनासिटी की शाइस्ता अंजुम राइटर व सोशल वर्कर हैं. यूँ तो वे कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ जुड़कर भी जनहित में लगी हैं उसके साथ ही साथ व्यक्तिगत तौर पर भी वे और उनका परिवार पीड़ितों की मदद पहुंचा रहा है. इस लॉकडाउन के दरम्यान कुछ ऐसी घटना घटी की इनके लिए इनके बच्चे ही प्रेरणास्रोत बन गयें.
लॉक डाउन के यही कोई 15 दिन बीते थें कि एक दिन सुबह- सुबह उनके मोबाइल पर बेटे के स्कूल के दोस्त का कॉल आया. बेटे के दोस्त के पिता ऑटोरिक्शा चलाते हैं और अब वे घर बैठ गए हैं तो पैसे की बहुत किल्लत हो गयी थी, संयुक्त परिवार था इसलिए उसने बेटे से हेल्प मांगी. लेकिन शाइस्ता जी के बेटे ने इन्हें कुछ बताया नहीं और अपनी व बहन के गुल्लक में जमा लगभग 3 हजार रुपये निकालकर अपने पापा को संग लेकर गुलजारबाग हाट चले गयें. शाइस्ता जी को लगा ये लोग पापा के साथ बाजार से घर के लिए कुछ सामान लाने जा रहे हैं. लेकिन जब सभी लौटे तो पता चला कि बच्चों ने अपने पैसों से उस ज़रुतमन्द ऑटोरिक्शा चालक के घर ज़रूरी दवाइयां और राशन का सामान पहुंचा दिया है. अपने बच्चों के इस कार्य से शाइस्ता जी और उनके पति बहुत प्रेरित हुए और निश्चय किया कि वे अब अपने स्तर से आस-पास के पीड़ित लोगों की भी सुध लेंगे.
एक दिन व्हाट्सएप पर मैसेज देखा कि बटाएकुंआ, सदरगली में कुछ फैमिली काफी दिक्कत में है जहाँ की महिलाएं थैला, पर्स, बिंदी, दूल्हे की मौड़ी आदि बनाकर अपने परिवार का गुजारा करती हैं, लेकिन सब काम ठप्प होने से खाने-पीने पर भी आफत हो गयी है. फिर भी वे लोग शर्म से किसी से मदद नहीं मांग रहे हैं. शाइस्ता जी ने अपने पति रब्बान अली की मदद से उनतक 20-25 दिन का राशन मुहैय्या करा दिया. वहीं की कुछ और फैमिली की मदद हेतु इनके पति और उनके कॉलेज के फ्रेंड्स पैसे जमाकर उन परिवारों तक मदद पहुंचायें. बाहरी बेगमपुर इलाके में रहनेवाले कुछ मजदूरों के बारे में जब रात में व्हाट्सएप पर मैसेज देखा तो शाइस्ता जी ने घर में जो भी था उसी में से कुछ सामान लेकर उनतक पहुंचवा दिया. सुल्तानगंज थाना के पास लॉज में इनके पति के गाँव के कुछ लड़के फंसे थें, उनका मैसेज भी मिला तो शाइस्ता जी के पति रब्बान अली ने वहीं पास रहनेवाले एक परिचित से कहकर उन लड़कों तक मदद पहुँचवा दी और खर्च हुए रुपए बाद में परिचित के एकाउंट में भेजेने का वादा किया.
अमित सिन्हा – प्रेसिडेंट अवार्ड से सम्मानित हो चुके एक्टर, सिंगर व सोशल एक्टिविस्ट अमित कुमार सिन्हा जो पहले से ही सोशल वर्क में सलंग्न रहे हैं पटना से अपने होम टाउन मोकामा गए हुए थें तभी लॉक डाउन हो गया. प्रधानमंत्री के अनुरोध सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अमित अपने घर से ही अपने आस-पास के इलाके के रोज कमाने-खानेवाले पीड़ितों को मदद पहुंचाने लगें.
लॉक डाउन के पहले फेज से ही अमित अपने कुछ सहयोगियों संग ऐसे गरीब मजदूर और रिक्शेवाले भाइयों के खातिर ज़रूरी सावधानी बरतते हुए सूखी खाद्य सामग्री की व्यवस्था करने में लगे हुए हैं. कुछ अति जरूरतमंद लोगों को पेटियम के द्वारा पैसा उपलब्ध करवाएं हैं. कोरोना के कहर से हुए नुकसान को देखते हुए अमित ने निर्णय लिया है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वे जब गांव से पटना लौटेंगे तो खुद मुख्यमंत्री से मिलकर चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड में 100000 रुपए का चेक भी डोनेट करेंगे.
विकास कुमार – मेडिको मित्र के रूप में जाने जानेवाले नालन्दा निवासी विकास कुमार पटना के गांधी मैदान इलाके में रहते हुए प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं. विगत 4 वर्षों से लावारिश या बेबस लोगों की दवाइयों से, रक्तदान से या फिर खाना देकर निःस्वार्थ मदद करते रहे हैं. पीएमसीएच अस्पताल में जब-तब उपलब्ध होकर गांव से आये कम पढ़े-लिखे लोगों को सही निर्देश देते हैं कि कहाँ पर एक्सरे होता है, कहाँ पर जाँच होता है, कहाँ ओपीडी है और कहाँ पर सस्ती दवाइयां मिलेंगी. लॉकडाउन के पहले दिन से ही विकास बिना किसी सहयोग के रोजाना नियम से सड़क पर के कुतों को बिस्किट, ब्रेड खिला रहे हैं. कभी-कभी सड़क पर मिले लवारिशों की भी मदद कर देते हैं.
(अगर पटना की ही बात करें तो ऐसे कई सामाजिक योद्धा और भी हैं जो इस वैश्विक समस्या के बीच बिना किसी के सहयोग के सिर्फ अपने बलबूते ही मैदान में जोशो-जुनून से डटे हुए हैं)