‘जनता एक्सप्रेस’ की शूटिंग के दौरान जब सच में मेरी पिटाई हो गयी : मनीष महिवाल, एंकर, रंगकर्मी व अभिनेता

‘जनता एक्सप्रेस’ की शूटिंग के दौरान जब सच में मेरी पिटाई हो गयी : मनीष महिवाल, एंकर, रंगकर्मी व अभिनेता
‘जनता एक्सप्रेस’ की शूटिंग के दौरान एंकरिंग करते हुए मनीष महिवाल

मेरी सबसे बड़ी जो उपलब्धि है, लोग जिससे मुझे जानते हैं वो ईटीवी बिहार का चर्चित कार्यक्रम ‘जनता एक्सप्रेस’ है. 2001 में हमें पता चला कि बिहार में एक चैनल आ रहा है जो बिहार-झाड़खंड की सारी समस्याओं-बातों को मनोरंजन के हिसाब से प्रस्तुत करेगा. इसके ऑडिशन के लिए बिहार-झाड़खंड और पास-पड़ोस के राज्यों से कलाकार आएं. तब मैं पटना दूरदर्शन के लिए छोटा-मोटा काम ही किया करता था. हमारे साथ पटना के कई रंगकर्मी-कलाकार भी भाग्य आजमाने गएँ. हजारों की भीड़ के बीच हमने भी फॉर्म भरकर जमा किया. हमें कॉल आया तो हमने वहां जाकर देखा कि सामने कैमरा लगा हुआ है और हमसे बोला गया कि आइये एंकरिंग कीजिये. इससे पहले एंकरिंग का अनुभव मुझे क्या शायद किसी को नहीं था. मैंने भी अपना ऑडिशन दिया. रीजनल चैनल था तो उसमे थोड़ी भोजपुरी का तड़का भी डाल दिया और मनोरंजन करते हुए अपना ऑडिशन दिया. फिर 15-20 दिन बाद खबर आयी कि फलाने दिन रिजल्ट आनेवाला है. कई लोग वैसे थें जो ऑडिशन लेनेवालों के ही जान-पहचान के थें तो हमलोगों को लगा कि पहले इन लोगों को चुना जायेगा, उसके बाद अगर 10-20 प्रोग्राम है तो हो सकता है लास्ट में हमारा भी शायद नंबर आ जाये. हम इंतजार करते रहें. फिर एक दिन अचानक एक मित्र का फोन आया कि, “मनीष एक रोड शो है जिसमे तुम्हारा सलेक्शन हुआ है.” और जिस मित्र ने फोन किया वो चैनल से आये लोगों के बहुत करीबी था. मैंने पूछा- “और तुम्हारा?” उसने कहा- “मेरा अभी नहीं हुआ है, लेकिन तुम्हारा फ़ाइनल हो गया है.” मुझे लगा यूँ ही मजाक कर रहा है. बाद में जब नेक्स्ट डे बुलाया गया तो पता चला कि पहला सेलेक्शन मनीष महिवाल का हुआ है. मुझे ऑफिस में बुलाया गया और फिर एक ऑडिशन लिया गया स्क्रीन पर प्रोमो के लिए. फिर डेट तय हुआ कि फलाने दिन से शूट पर जाना है. रोड शो करना है जिनमे लोगों से बातचीत करनी है, गेम्स कराने हैं. प्रोग्राम का नाम था ‘जनता एक्सप्रेस’.

‘जनता एक्सप्रेस’ में गेम शो कराते मनीष महिवाल

पता चला कि ठीक ऐसा ही प्रोग्राम वेस्ट बंगाल में चलता है तो उस प्रोग्राम का कैमरामैन आया हुआ था. वो हमें बॉडी लैंग्वेज, कैमरा ऐंगल व मूवमेंट सब सिखाया. उसके बाद नेक्स्ट डे शूटिंग के लिए जाना था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कैसे होगा, क्या होगा? कितनी देर बात करेंगे. सुबह-सुबह हम ऑफिस गए, कॉस्ट्यूम मिला, तैयार हुए, मेकअप हुआ फिर सुबह-सुबह 8 बजे हमलोग पटना सिटी निकल गए. बंगाली कॉलोनी स्थित मंगल तालाब के पास हमारा शूटिंग लोकेशन था. वहां जाकर लोगों को इकट्ठा किया गया. हमारे डायरेक्टर थें संजय सिन्हा. जब स्टार्ट हुआ तो जैसे-जैसे पब्लिक मेरे करीब आयी धीरे-धीरे मैं चार्ज होने लगा. और कंटीन्यू एक से डेढ़ घंटा शूट हुआ. जिसमे हमने लगभग 15-20 लोगों से बातचीत किया. दूसरे सेगमेंट में गेम था इसलिए हमलोग बंगाली कॉलोनी में गए. वहां की कुछ लड़कियां जो कोलकाता में ‘जनता एक्सप्रेस’ चलता था उसकी दर्शक थीं. तो उन्होंने और गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया. बिल्कुल फैमली जैसा ट्रीटमेंट मिला. फिर वहां शूट हुआ तो शाम के सूर्य डूबने तक चला. बाद में एडिट होकर वो एपिसोड 27 जनवरी को टेलीकास्ट हुआ. सारे लोग देखें, इंज्वाय किये. लोगों को पसंद आया. हमे भी कुछ नया करने में मज़ा आ रहा था. और ईटीवी बिहार का पहला टेलीकास्ट था जो आज 17 साल देने जा रहा है. ये प्रोग्राम आज भी बदस्तूर चल रहा है. इसमें कई अधिकारी आये-गएँ लेकिन मैं आज भी इससे जुड़ा हूँ.

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपना संस्मरण बयां करते मनीष महिवाल

 

अभी जो हमलोग हिडेन कैमरा से पोपट बनाने का शो करते हैं वो तब 3-4 साल बाद शुरू हुआ था. आज बिहार-झाड़खंड ही नहीं बल्कि यह शो पूरे देश-दुनिया के लोग बड़े चाव से देख रहे हैं. जिस समय बिहार में क्राइम सर पर था उस समय बाहर निकलिए तो कोई आदमी अपने को किसी से कम नहीं समझता था. बात-बात पर झगड़ा-झंझट हो जाता था. इस माहौल में मैं इस कार्यक्रम के जरिये सामनेवाले को बुरी तरह से छेड़ता था, टॉर्चर करता था. और बिना उनसे हाथापाई किये वहां से निकल आना तब आसान काम नहीं था. कई बार शूटिंग शुरू होने के पहले डर लगता था कि कहीं हम पिट न जाएँ. उसी दरम्यान का एक वाक्या है जो मैं ‘बोलो ज़िन्दगी’ के माध्यम से बयां करना चाहूंगा.

 

 

आज से लगभग 8-9 साल पहले 2006-2007 की बात है. वेटनरी कॉलेज के सामनेवाले रोड पर हमलोग शूट कर रहे थें. दो एंगल से हमारा कैमरा गाड़ी में लगा हुआ था. बीच सड़क पर खड़ा होकर मैं इंतज़ार कर रहा था किसी पोपट भइया का. कॉन्सेप्ट ये था कि कोई भी आये तो उसका मोबाईल मांगकर उसी के मोबाईल से बंदूक और बम मंगवाना था. शुरू में दो लड़का आया. एक से जरुरी काम बताकर उसका मोबाईल लिया फिर उसी से मैं कहीं कॉल लगाकर फलाने जगह बम-बंदूक मंगाने लगा. और हम लास्ट में ये भी बोल देते थें कि “चिंता मत करना, इस बार हम अपने मोबाईल से नहीं कर रहे हैं बल्कि एक भाई जी का मोबाईल है. कुछ होगा तो बता देंगे कि भाई जी लिए थें.” इतना सुनना था कि वह लड़का मेरे हाथ से मोबाईल छीनने लगा. गुस्से में बोलने लगा कि “मेरे मोबाईल से आप गोली-बंदूक मँगा रहे हैं, हम फंसेंगे तो आप हमें बचाइयेगा?” फिर वह लड़-झगड़कर अपना मोबाईल लेकर वहां से आगे बढ़ गया. उसके बाद हम इंतज़ार करने लगें कि कोई और आएगा तो उसको पकड़ेंगे. इस दौरान हुआ ये कि जहाँ हम शूट कर रहे थें वहां से लगभग 50 मीटर दूर एक चाय की दुकान थी जहाँ पर तीन-चार लोग पहले से बैठे हुए थें. और वो दोनों लड़के उसी दुकान पर गए और हमारी शिकायत करने लगें. ये बात हमें बहुत बाद में पता चली. इधर मेरे करीब से फिर दो लड़का गुजरा तो उनका भी मैंने मोबाईल लिया और वही बातचीत की. वे भी मोबाईल छीनकर भागे और उसी चाय की दुकान में गए और अपनी बातें शेयर कीं. तब तक एक लड़के को पकड़कर मैंने वही कहानी शुरू की और वो लड़का अपना मोबाईल छीन ही रहा था कि उतने में उस दुकान पर जमा होकर एकजुट हुए 5-7 लड़के पता नहीं किस तरफ से आएं और मेरे ऊपर टूट पड़ें. फिर धड़ाम-धुरूम की आवाज….

 

जब तक हमारी कैमरा टीम, यूनिट और सिक्योरिटी के लोग गाड़ी से निकलकर मेरे पास आते तब तक दो-चार मुक्का मुझे पड़ चुका था. फिर जब उनलोगों ने कैमरा देखा और सच्चाई पता चली कि शूटिंग हो रही है तो वे बेचारे सहम गएँ कि ये हमने क्या कर दिया. तभी उनके बीच से निकलकर मैं कैमरा की तरफ बढ़ा, कैमरे को देखा और कहा- “तब भाई जी मजा आया ना, आप तो इसी इंतज़ार में रहते हैं कि मनीषवा कब पिटाये..? लीजिये आज हम पिटा गएँ और आपका मन भर गया. लेकिन एक बात सुन लीजिये, आपके इस हंसी के लिए मनीष महिवाल अपनी जान देने के लिए तैयार है. आगे चलते हैं और लेते हैं एक छोटा -सा ब्रेक…. ये एपिसोड बहुत वायरल हुआ. सभी को पसंद आया. इससे लोगों को पता चला कि ये जो हम उनके इंज्वाय के लिए करते हैं वो आसान नहीं है. ये थी हमारी पहली यादगार शूटिंग जो मैं आजतक नहीं भूला.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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