कला जागरण द्वारा जंग-ए-आजादी की कहानी दुर्गा भाभी की क्रांति-यात्रा पर आधारित नाटक “मैं यहीं हूँ” का मंचन प्रेमचंद रंगशाला में किया गया | डा.किशोर सिन्हा नाट्य रूपांतरित तथा सुमन कुमार परिकल्पित एवं निर्देशित नाटक मैं यहीं हूँ दर्शकों को देश-प्रेम के भाव में सरावोर करती है |
मंच पर :-
बाल दुर्गा- अराध्या सिन्हा वृद्ध दुर्गा भाभी- भावना वर्मा दुर्गा एवं भगवती माँ- चंद्रावती कुमारी
दुर्गा भाभी- अर्चना एंजल सुशीला भाभी – नेहा कुमारी साहित्यकार – डा. किशोर सिन्हा
चंद्रशेखर आजाद- कुमार सौरभ भगवती चरण बोहरा – चन्दन राय भगत सिंह – सूरज कुमार
लाला लाजपत राय/सुखदेव/वैशम्पायन – सौरभ सिंह एस.पी.स्कॉट/एडवर्ड/ सुखदेव राज-सलमान मुजफ्फर
राजगुरू – ऋषिकेश कुमार यशपाल – प्रिंस राज वकील/ पृथ्वी सिंह आजाद – मिथिलेश कुमार सिन्हा
बापट – अरविन्द कुमार सिपाही/ क्रांतिकारी – समीर सिंह सिपाही – मो. सदरूद्दीन
क्रांतिकारी – पवन कुमार सिंघम,सचीन्द्रनाथ,उदित राज,अभिषेक कुमार,चन्दन कुमार, संजना कुमारी
देशभक्त बच्चे – अवनि श्रेया,मैथली कश्यप, मृगानका कश्यप, कौशिकी कृति, समृद्धि श्रेया, दृश्या वत्स, दीक्षिता वत्स, पारी सिंह, कृशिव
मंच परे :-
संगीत परिकल्पना – डा. किशोर सिन्हा संगीत संचालन – शैलेन्द्र कुमार
गीत गायन – ध्रुवी गौतम मंच परिकल्पना – आदर्श वैभव
मंच सज्जा – सुनील कुमार प्रकाश एवं ध्वनि नियंत्रण – मनीष कुमार
रूप सज्जा – अंजू कुमारी वस्त्र विन्यास – रीना कुमारी
वस्त्र सज्जा – मो. सदरूद्दीन प्रस्तुति सहयोग – रणविजय सिंह
प्रस्तुति नियंत्रण – रोहित कुमार नाट्यकार – डा. किशोर सिन्हा
परिकल्पना एवं निर्देशन – सुमन कुमार विशेष सहयोग – संगीत शिक्षायतन
मार्गदर्शन – गणेश प्रसाद सिन्हा/ अखिलेश्वर प्रसाद सिन्हा
आभार – बिहार संगीत नाटक अकादमी,प्रेमचंद रंगशाला परिवार,रंगकर्मी गण एवं सभी पत्रकार बंधु
कथा सार – भारत की आजादी के लिए अपनी जान हथेली पर रख अंग्रेजों से लड़ने वालों में पुरुष ही नहीं, महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रही हैं। भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक महिलाओं ने खुद को बलिदान कर दिया था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई सहित अनेक वीर महिलाओं की जांबाजी का भारतीय इतिहास गवाह रहा है। इन महिलाओं में एक नाम दुर्गावती देवी का भी है, वही दुर्गावती, जिन्हें इतिहास दुर्गा भाभी’ के नाम से जानता है। दुर्गा भागी भले ही भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, अशफाकुल्लाह या बिस्मिल की तरह फांसी पर न चढ़ी हों, लेकिन आज़ादी की लड़ाई में उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ, कथे-से-बंधा मिलाकर बराबरी से काम किया, उनकी आक्रामक योजना का हिस्सा बनीं। दुर्गा भाभी पिस्तौल चलाती थी, बम बनाती थीं तो अंग्रेज़ों से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को रक्त-धंदन कर विजय-पथ पर भी भेजती थीं।
ऐसी जांबाज, साहसी और देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाली दुर्गा भाभी पर केन्द्रित है कला जागरण की प्रस्तुति- नाटक-क्रांति की चिंगारी : दुर्गा भाभी पर आधारित “मैं यहीं हूँ “..