आमतौर पर आज राह चलते किसी लड़की के संग हो रही ईव टीजिंग को देखकर भी लोग उसे नजरंदाज कर देते हैं यह सोचकर कि अब भला कौन दूसरे के झमेले में पड़ने जाये..और आखिर वो हमारी लगती क्या है?…. लेकिन वह शायद यह भूल जाते हैं कि ऐसी शर्मनाक घटनाओं की शिकार कभी उनकी भी माँ-बहने हो सकती हैं. लेकिन हम-आप में से ही ख़ुशी जैसे युवा भी होते हैं जो ऐसी समस्याओं को गंभीरता से लेते हैं.
जहानाबाद, शाहपुर की रहनेवाली ख़ुशी सिंह अक्सर देखती थीं कि पटना शहर में जहाँ-तहाँ ईव टीजिंग की परेशानी हो रही है तो वे सोचतीं कि इस तरह की परेशानियां कभी खत्म होंगी भी या नहीं. फिर 2014 के अंतिम महीनों की बात है ख़ुशी ने अपने क्लास के कुछ फ्रेंड्स के साथ डिस्कशन किया. बाद में एक आइडिया आया और सबने मिलकर ईव टीजिंग के मुद्दे पर वर्क करना शुरू कर दिया. अब आईये जानते हैं ख़ुशी के ही शब्दों में एक छोटी सी पहल के एक बड़ी मुहीम बनने की पूरी कहानी….
‘मैं पटना के बुद्धा कॉलोनी में रहती हूँ. उधर एक स्लम एरिया है जहाँ लोगों का जमावड़ा लगा रहता था. वहां से जितनी भी लड़कियां जाती उनपर कमेंट्स किये जातें. कहीं-ना-कहीं मैं खुद और मेरी फ्रेंड्स भी इस चीज को झेल रही थीं. तब एक दिन हमलोगों ने डिस्कशन किया कि क्या ये प्रॉब्लम कभी सॉल्व नहीं होगी. पहले हम 6 से 10 हुए उसके बाद कुछ लड़के भी जुड़े. तब हम 10 से 20 और 20 से 30 हुए फिर हमने इस मुद्दे पर अपने सीनियर से चर्चा कि- क्या इस तरह की समस्या नहीं रुक सकती है..? उन्होंने कहा- अगर आपके अंदर आत्मविश्वास हो, हौसला हो तो बिलकुल रुक सकती है. फिर हमने धीरे-धीरे काम करना शुरू किया. हमलोगों के माइंड में था कि यहाँ एक बन्दे से कुछ नहीं होगा जबतक यूनिटी नहीं होगी. फिर ‘यूथ फॉर स्वराज’ ऑर्गेनाइजेशन का जन्म हुआ. जिन्हें भी लगता की छेड़खानी की वारदातें रुकनी चाहिए और इस दिशा में हमे भी आगे बढ़कर कुछ करना चाहिए वो स्वेच्छा से हमारे ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ते चले गए. और 6-10 लोगों से शुरू यह कारवां अब लगभग डेढ़ सौ की शक्ल में वृहत रूप अख्तियार कर चुका है. और इस मुहीम में ना सिर्फ स्टूडेंट्स बल्कि जॉब करनेवाले युवा और गृहणियां भी दिल से शामिल हैं.
कहीं भी छेड़खानी की वारदातें होती तो हमलोगों में से कोई प्रतिनिधि ऐसा करने वाले के पास जाकर समझाता कि आप गलत हो, ऐस मत करो. लेकिन उनका भी रिएक्शन बहुत गन्दा होता कि – आप कौन होते हैं हमें समझानेवाले…? फिर हमारे पास ऑप्शन नहीं होते थें कि क्या किया जाये, किस तरीके से ये वारदातें स्टॉप की जाएँ. फिर हमलोगों ने तय किया की हम 5-10 की संख्या में जाएँ तो कोई हमारी बात सुन सके क्यूंकि एक के जाने से कुछ नहीं होनेवाला. बहुत बार हमलोग पुलिस स्टेशन फोन करके बताते थें कि ऐसी प्रॉब्लम यहाँ हो रही है. लेकिन वहां भी बहुत ज्यादा रिएक्शन नहीं होता था. हमलोगों के पास रॉन्ग-नंबर से कॉल भी आते थें. फिर हम जब महिला हेल्पलाइन में कॉल करते तो वहां से अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिलता था. उनका रिएक्शन होता कि आप आकर यहाँ पहले एफ.आई.आर. लॉन्च कराओ फिर एक्शन लिया जायेगा. मेरा ये मानना था कि कोई बंदा मर रहा है तो पहले उसे ट्रीटमेंट की जरुरत है ना कि और वेट करने की. फिर फाइनली हमलोगों ने डिसाइड किया कि क्यों ना हम मुख्यमंत्री के पास जाकर इन चीजों का जिक्र करें, अपना सुझाव दें. फिर मुख्यमंत्री नीतीश जी से मिलकर यूथ फॉर स्वराज के लगभग सौ लड़के-लड़कियों ने अपनी बात रखी. उसके पहले हमलोग छोटा-छोटा आवेदन हर जगह दे रहे थें लेकिन उसका कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला रहा था. फिर मुख्यमंत्री जी से मिलने के एक-दो दिन बाद वहां से एक्शन लिया गया और महिला हेल्प लाइन ने सही ढंग से काम करना शुरू किया. ये हमारी पहली जीत थी.
पहले हमलोग छोटे-छोटे केस फेस करते थें. उसी क्रम में नागेश्वर कॉलोनी में मेरी फ्रेंड्स जो हॉस्टल में रहती हैं वहां लड़कों का अक्सर जमावड़ा लगा रहता था. एक-दो बार हमारी फ्रेंड्स के साथ बद्द्तमीजी भी हुई. फिर हमने वहां की प्रॉब्लम पटना के एस.एस.पी. मनु महाराज के सामने रखी और हमलोगों का यह कहना था कि किसी लड़की के साथ राह चलते ऐसी घटना होती है तो वह किसी लेडी कॉन्स्टेबल के पास जाने पर ज्यादा कंफर्टेबल महसूस करेगी ना कि जेंट्स कॉन्स्टेबल के पास जाने पर. तो हमलोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि जहाँ भी चौक-चौराहे पर ऐसी प्रॉब्लम होती है तो वहां पर लेडी कॉन्स्टेबल होनी चाहिए. उसके बाद उन्होंने लेडीज कॉन्स्टेबल को वैसी जगहों पर तैनात करवाया. ये अगस्त 2017 की बात है. यह हमारी दूसरी बड़ी जीत थी. इसी के तहत हमने स्लम एरिया के बच्चों के बीच मुफ्त में एडुकेशन का काम भी शुरू किया है. और शुरुआत हुई बुद्धा कॉलोनी स्लम एरिया से. क्यूंकि हमारा मानना है कि शिक्षा से ही इन बच्चों में संस्कार आएगा और वे बुरी हरकतों से दूर रहेंगे. सप्ताह में 5 दिन शाम 4 से 6 बजे तक क्लास चलती है. हमारे ग्रुप के ही लोग एक-एक करके अपना समय देते हैं. हमलोग कॉलेज में परिचर्चा भी करवाते हैं. कहीं-ना-कहीं छेड़खानी की शिकार सभी होती हैं लेकिन हर किसी में इतनी हिम्मत नहीं होती कि कुछ कह सकें. हमलोग परिचर्चा के द्वारा लड़कियों को यह शिक्षा देते हैं कि किस तरह आप अपने आप को आगे ला सकते हो, कैसे प्रॉब्लम होने पर सॉल्व कर सकते हो.
हमलोगों ने देखा है कि सरकारी स्कूलों में कुछ टीचर सही से पढ़ाते नहीं हैं. तो हमारी कोशिश रहती है कि हम उनसे बात करें, उन्हें समझाएं. अगर फिर भी सुधार नहीं होता तो हमलोग इस चीज को आगे तक ले जाते हैं कि इस तरह से बच्चों के साथ प्रॉब्लम हो रही है. स्वच्छ भारत अभियान के तहत भी हमारी कोशिश रहती है जहाँ भी कहीं गंदगी हो वहां पर यथा संभव साफ़-सुथरा रखने की ताकि एक स्वच्छ व स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके.
लड़कियां अभी भी स्पोर्ट्स में आगे नहीं जा पा रही हैं. तो हमलोगों ने हाल ही में मोकामा में कबड्डी का मैच करवाया था ताकि अच्छा परफॉर्मेंस करके उनका मनोबल बढ़ सके.’
यूथ फॉर स्वराज की डायरेक्टर ख़ुशी सिंह बी.कॉम से ग्रेजुएशन करने के बाद फ़िलहाल जेनरल कम्पटीशन की तैयारी में लगी हैं. भविष्य में मीडिया सेक्टर में जाना चाहती हैं क्यूंकि इन्हे लगता है कि शायद वे आम जनमानस से जुड़ी समस्याओं-परेशानियों को उठा सकें, लोगों के सामने रख सकें. ख़ुशी और यूथ फॉर स्वराज के इस सराहनीय कार्य को ‘बोलो ज़िन्दगी’ का सलाम.