“हाई हिल सैंडल में देख मुझे राह में लड़के भद्दे कमेंट पास करते हैं फिर भी आजाद हूँ मैं….साढ़े 7 बजते ही हर पांच मिनट में मेरी माँ का कॉल आना शुरू हो जाता है बिल्कुल क्यूंकि आजाद हूँ मैं…” अपना फ्रस्टेशन कुछ यूँ निकालते हुए मंच पर कविता सुनाने आयीं जर्नलिज्म की स्टूडेंट नेहा निहारिका कह रही थीं कि “लड़कियों को काफी संस्कार सिखाया जाता है लेकिन मुझे लगता है अब लड़कों पर ज्यादा ध्यान देने कि जरुरत है.”
पटना, 11 अगस्त, अवसर था पटना संग्रहालय में प्रसिद्ध नाटककार डा.चतुर्भुज जी की स्मृति में चल रहे व्याख्यान और युवा कवि-गोष्ठी के आयोजन का. विभिन्न स्कूल एवं कॉलेज के चालीस से भी अधिक छात्रों ने देशप्रेम, हमारा इतिहास और हमारी विरासत विषय पर अपने विचारों और कविताओं से उपस्थित दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी. कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन दूरदर्शन केन्द्र,पटना की निदेशक डा.रत्ना पुर्कायास्थ ने किया.
इस अवसर पर पटना संग्रहालय के अपर निदेशक विमल तिवारी, संग्रहालयाध्यक्ष डा.शंकर सुमन, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सुमन कुमार, मगध कलाकार के सचिव अशोक प्रियदर्शी,चमन वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष तुलिका वर्मा ने अपने विचार व्यक्त किये. मुख्य अतिथि रत्ना पुरकायस्थ ने कहा कि “मैं आज जो कुछ भी हूँ वो स्व. डॉ. चतृर्भुज चाचा की ही देन है क्यूंकि मैं जब बहुत छोटी उम्र की थी तभी उन्होंने मुझे नाटकों में अभिनय करने का ब्रेक दिया था.” वहीँ मगध कलाकर के श्री अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि “मेरे पिता जी यानि स्व. चतुर्भुज जी की स्मृति में पहली बार ये आयोजन हुआ है, कोशिश रहेगी इसे आगे भी जारी रखा जाये ताकि कला के क्षेत्र में उभरते युवाओं को और भी मौके मिल सके.”
पहले सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमे शायर समीर परिमल, प्रवीण कुमार मिश्र उर्फ़ कवि जी, प्रेरणा प्रताप इत्यादि युवाओं ने देशभक्ति से ओत-प्रोत कविताओं का पाठ किया.
कार्यक्रम में भारती मध्य विद्यालय, राजकीय उच्च विद्यालय,कंकडबाग, होली मिशन सेकेंडरी स्कूल,दिल्ली मॉडल स्कूल, पटना वीमेंस कालेज सहित करीब एक दर्जन स्कूल-कॉलेज के बच्चों ने भाग लिया. युवा कवि एवं कवियत्रियों के कविता पाठ की जरा एक बानगी देखिये-
प्रणव कुमार – “अब तुम अपने अन्दर जगा लो अपने अन्दर के देश प्रेम को, कैसे लुट रहा है वतन मेरे साथियों..”
अपूर्वा सिन्हा – “मै भारतवर्ष का हरदम सम्मान करती हूँ, यहाँ की चांदनी मिट्टी का हरदम गुणगान करती हूँ…”
गुड्डू– “रो-रोकर अब करना ना अपना बुरा हाल
मैं फिर से जनम लूंगा बनके भारत माँ का लाल…”
दुर्गा कुमारी, पटना वीमेंस कॉलेज – “जाते हो तो सुनते जाओ एक माँ की दरख्वास्त सुनवाते जाओ,
वतन एक था जिसकी चिंगारी बुझने न पाए दुःख का आलम चाहे जितना सताए….”
सत्यम भूषण श्रीवास्तव – “कुछ लोग देशद्रोहियों को मसीहा भी बनाते हैं
और हम न जाने क्यों उन्हीं की तारीफ करते जाते हैं.
असली देशभक्ति ऐसों को पनाह देने में नहीं होती
असली देशभक्त देशद्रोहियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं.
कुछ लोग आज के लिए भूत को दोषी ठहराते हैं
पुराने नेताओं के फैसलों को गलत वे बताते हैं.
असली देशभक्ति मृत नेताओं को कोसने से नहीं होती
असली देशभक्त भूत से चीरकर मुल्क को सिखाते हैं….”
वरुण राज- “अगर हिन्दू-मुस्लिम एक हो जायेंगे
अगर एक भी बहन घर में सुरक्षित हो जाएगी
और हर घर को दो वक़्त के निवाले मिल जायेंगे
तो हाँ हम कह सकते हैं कि हम आजाद हैं, हम आजाद हैं, हम आजाद हैं…”
सपना- “रो-रो के है पूछती माँ भारती की वो नजर
हो रही दरिंदगी को देखकर बढ़ रहा है सीने का वो कहर.
हुए कई साल आजादी के लेकिन देश आजाद नहीं हो पाया है
अंग्रेजों का साया अभी भी हमारे हिंदुस्तान पर छाया है…”
नेहा निहारिका – “है लूटपाट का बाजार हर ओर, धूमिल सी लग रही है माँ के प्यार की हस्ती.
बरकतें हैं कामयाबी है कहने को तो हर ओर आजादी, जाती-धर्म के बहाव में मान रहें अपनी शक्ति…”
वहीँ दूसरे सत्र में व्याख्यान आयोजित हुआ जिसमे पत्रकार राकेश सिंह ‘सोनू’ ने जहाँ देशप्रेम के टॉपिक पर अपने वक्तव्य रखें वहीँ होली मिशन सेकेंडरी स्कूल, क्लास 9 वीं की शारदा ने भारत के इतिहास और क्लास 6 की श्रेयांशी ने हमारी विरासत पर व्याख्यान दिया.
कार्यक्रम की रोचक बात ये रही कि इस आयोजन में स्कूल-कॉलेज के स्टूडेंट्स के साथ-साथ कुछ युवा पत्रकारों ने भी अपनी सहभागिता दर्ज कराई. सामयिक परिवेश पत्रिका के संपादक समीर परिमल ने अपनी शायरी से देशप्रेम की कुछ यूँ अलख जगाई “कर शहीदों की कुर्बानियों को नमन, रंग वसंती लगाएं मजा आएगा. मेरे प्यारे वतन ए दुलारे वतन, जान तुझ पर लुटाएं मजा आएगा…”
इसके बाद पटना दूरदर्शन की एंकर प्रेरणा प्रताप ने कुछ यूँ समां बांधा –
“वो कोठरियां थीं अँधेरी दीवारें बदबूदार सीलन से भरीं
एक ओर जहाँ गोरे बरसा रहे थें कोड़े और चीखों में भारत माता की जय
भारत माता की जय बस भारत माता की जय गूंज रही थीं.
वो इश्क़ था या उसे कहोगे उसका जुनून
हँसते-हँसते सीने पे खाली गोलियां
माँ के आँचल में तो कभी सड़कों पर बह रहा था उसका खून…”
उसके बाद वहां रिपोर्टिंग करने पहुँचे ‘बोलो ज़िन्दगी’ के संपादक राकेश सिंह ‘सोनू’ ने युवाओं को सम्बोधित करते हुए देशप्रेम पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया जो कुछ यूँ है “फिल्म ‘स्वदेश’ का मोहन भार्गव 15 सालों से अमेरिका में रहता है और जब वह अपने वतन लौटता है तो गांव की बदहाली, लोगों का भूखे पेट रह जाना, बच्चों का स्कूल जाने की बजाये मेहनत- मजदूरी करना उसे इतना कचोटता है कि वह हमेशा के लिए पराये देश के सुख-सुविधाओं को छोड़ अपने लोगों के बीच अपने ज्ञान-कौशल के द्वारा अपनों के लिए कुछ करने चला आता है. पर यहाँ हम युवाओं की नजरों के सामने तो हर वक़्त बदहाली और कुव्यवस्था का आलम छाया रहता है फिर भी क्यों नहीं हम दूसरों के लिए कुछ कर पाते हैं..? फिल्म ‘स्वदेश’ का ‘मोहन भार्गव’ ठीक ही तो कहता है कि हम भारतियों में एक ही खराबी है कि वो कोई भी समस्या हो तो सिर्फ सरकार एवं व्यवस्था पर दोष मढ़ते हैं जबकि यह नहीं समझ पाते कि वे खुद भी इसी व्यवस्था के अंग हैं. बिना उनके सहयोग से यह व्यवस्था यह सरकार चाहकर भी सबकुछ नहीं कर सकती. हमारी समस्या यह है कि हम खुद एक समस्या हैं. हमेशा जात-पात, धर्म-सम्प्रदाय, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेदकर एक-दूसरे से बिना खास वजह लड़ते-झगड़ते रहते हैं, एक-दूसरे को दोष देते रहते हैं जबकि अगर हम समय का सदुपयोग करते हुए कंधे-से-कन्धा मिलाकर अपनी समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करें तो उससे छुटकारा पाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा. और यह तभी होगा जब हम देशवासी अपने अंदर के मोहन भार्गव को पहचानकर उसकी बात सुनेंगे….”
कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को पटना म्यूजियम के अध्यक्ष शंकर सुमन और चमन वेलफेयर की तूलिका वर्मा ने प्रतीक चिन्ह और प्रमाण पत्र वितरित किया. कार्यक्रम का संचालन सूरज ठाकुर बिहारी ने किया और इसका संयोजन मगध कलाकार, चमन वेलफेयर ट्रस्ट और कला जागरण,पटना ने किया. इस अवसर पर पर्यावरण की रक्षा के संकल्प के साथ वृक्षारोपण भी किया गया.