16 फरवरी, पटना के जक्कनपुर स्थित “संस्कारशाला सह पुस्तकालय” में एक महफ़िल सजी गौरैया के नाम. कलमगार संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम “ओ री गौरैया” में जल, जीवन, जंगल, प्रकृति, पशु-पक्षी विषय पर आधारित कवि-सम्मेलन का दौर चला.
कार्यक्रम में कविता के माध्यम से कुल 37 युवा एवं वरिष्ठ कवियों ने लुप्त हो रहे पक्षी गौरैया और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया. कार्यक्रम में मंच संचालन कवि मणिकान्त कौशल और संयोजन सुमन सौरभ ने किया.
नसीम अख्तर साहब की कविता ने हमें वृक्षों की अहमियत भी बताई –
जिसकी घनी छाँव के तले हमने
सुलगती धूप में पनाह पाई थी…….
कवि सिद्धेश्वर की कविता “कौन पत्ते-पत्ते पर लिख रहा काले धुएं का गीत…” ने बड़ी खूबसूरती के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या की तरफ इशारा किया.
विपुल शरण की पंक्ति “कैसे करूं मैं वर्णन, तू है मेरा पर्यावरण…..” ने भी पर्यावरण सरंक्षण के प्रति ध्यान आकर्षित किया.
मणिकान्त कौशल की मार्मिक कविता “जाने कहां वो चली गई, जाने क्या क्या खाती है, वो प्यारी प्यारी गौरैया, नजर नहीं अब आती है…” ने लुप्त हो रही गौरैया के बाबत वैश्विक चिंता को प्रकट किया.
अमृतेश मिश्रा ने अपनी कविता “ओ ! पम्प मोटर वालों, अरे पानी बचा लो…” के जरिये जल के क्षरण की और ध्यान केंद्रित कराया.
केशव कौशिक ने अपनी कविता “बादलों में तैरते गांव घर, कहो सुखन कभी देखा है….” से प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण किया.
वहीँ अमित कुमार मिश्रा ने एक व्यंग कविता सुनकर खूब वाह-वाही बटोरी – “मैंने कुल्हाड़ी पेड़ पर चलायी और वह खिलखिलाकर हंस पड़ा…”.
कार्यक्रम में काव्य-सरिता के साथ-ही-साथ जब अतिथि वक्ताओं को सम्बोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया तो फिर राकेश सिंह ‘सोनू, संजय कुमार ‘संज’, अभिलाष दत्ता, संजीव कुमार आदि युवा लेखकों ने कलमगार के संस्थापक सुमन सौरभ के कार्यों की सराहना करते हुए लुप्तप्राय पक्षी गौरैया और पृथ्वी पर घटती हरियाली पर चिंता जाहिर करते हुए अपने-अपने विचार एवं सुझाव प्रस्तुत किए.
इस मौके पर कार्यक्रम हॉल ‘संस्कारशाला सह पुस्तकालय’ के संस्थापक संजीव कुमार की माता श्री ने खुद अपने हाथों से वेस्ट हो चुके कपड़ों से बनाये खूबसूरत बैग कलमगार टीम को भेंट किया.
‘बगिया नन्हे बागवान की’ कार्यक्रम का हुआ विमोचन – गौरैया संरक्षण और पर्यावरण पर बेहतर काम कर रहे कलमगार टीम के संस्थापक सुमन सौरभ ने बोलो ज़िन्दगी को बताया कि “कलमगार की टीम गौरैया संरक्षण के कार्यक्रम में एक कदम आगे बढ़ते हुए अब शहर में प्रकृति संरक्षण हेतु लोगों को उनके घर जाकर प्रेरित करने वाली है. मार्च के अंत से हर रविवार को टीम के सदस्य शहर के किसी अपार्टमेंट में जाकर लोगों को अपने घर के सबसे छोटी बेटी के नाम से बालकनी में प्लास्टिक के बोतल में बगीचा डेवलप करने की वर्कशॉप देंगे तथा उसके लिए उपयोगी सारे संसाधन उपलब्ध करवाएंगे जिसमें गृह स्वामी के पास प्लास्टिक की 25 से अधिक की संख्या में बोतल होने चाहिए.” कलमगार की मानें तो गौरैया संरक्षण के लिए बर्ड हाउस के साथ-साथ प्रकृति तथा बगीचे का बढ़ना जरूरी है ताकि जीवन की श्रंखला सतत चलती रहे.