आखिर क्या होता है ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिज्म?’

आखिर क्या होता है ‘व्हाइट कॉलर टेरेरिज्म?’
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड

10 नवंबर 2025 को राजधानी दिल्ली में लाल किले के पास हुए आतंकी धमाके में अब तक 13 से अधिक लोगों की जानें गईं हैं, यह बहुत ही दुखद है। वास्तव में, यह हमला कहीं न कहीं हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी एक प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। हालांकि,जांच एजेंसियां,सुरक्षा बल अपना काम लगातार कर रहें हैं, तथा हमले के तार कहां से लेकर कहां तक जुड़े हैं, इसके बारे में पता लगाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आज नक्सलवाद की भांति ही आतंकवाद पर भी नकेल कसने की जरूरत है।हाल फिलहाल, इस आतंकी हमले (10/11) के तार जहां तक पहुंच रहे हैं, उससे यह अवधारणा तो कहीं न कहीं टूटती नज़र आती है कि आर्थिक-सामाजिक रूप से हाशिए पर पहुंचे लोगों को धार्मिक कट्टरता का पाठ आसानी से पढ़ाया जा सकता है।

दरअसल , हाल ही में भारत में पकड़े गए कुछ आतंकी मॉड्यूल/संदिग्धों ने इस प्रकार के आतंकवाद के विस्तार को उजागर किया है, जिसमें उच्च पदस्थ और संपन्न वर्ग के लोग शामिल पाए गए  हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली धमाके में जांच एजेंसियों ने जो नाम उजागर किए हैं, उनमें विश्वविद्यालयों में पढ़ने-पढ़ाने वाले, टेक्नोलॉजी और सोशल नेटवर्किंग की गहरी समझ रखने वाले लोग हैं और इन्हें ‘सफेदपोश आतंक तंत्र’ (वाइट कॉलर टेरर इकोसिस्टम) के रूप में परिभाषित किया जा रहा है।पाठक इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि ‘व्हाइट कॉलर आतंकवाद’ शब्द आतंकवाद का वास्तविक रंग नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार के आतंकवाद को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक रूपक है। वैसे, यहां पाठकों को बताता चलूं कि व्हाइट-कालर आतंकवाद एक ऐसा शब्द है जो उन गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जिनमें आतंकवादी या अपराधी हथियारों या बमों का उपयोग नहीं करते, बल्कि आर्थिक(साइबर अटैक, बैंकिंग फ्रॉड, बड़े स्तर पर घोटाले, डेटा चोरी, फेक न्यूज़ फैक्टरी, शेयर बाजार में हेराफेरी आदि), तकनीकी, प्रशासनिक या डिजिटल माध्यमों से समाज, सरकार या किसी संस्था को गंभीर नुकसान पहुँचाते हैं। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि व्हाइट-कालर आतंकवाद वह आतंकवाद है जो कलम, कंप्यूटर और पैसे के जरिए किया जाता है-जिसका असर बंदूक,बम से चलाए गए आतंक जितना ही घातक हो सकता है।

बहरहाल,यह वाकई बहुत ही चिंताजनक है कि आज शिक्षित और पेशेवर लोग यदि आतंकवाद में शामिल हो रहे हैं, जैसा कि हाल ही में (आतंकी हमलों के तार जुड़े होने के क्रम  में) यह सामने आया है‌।जब डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर या अन्य तकनीकी विशेषज्ञ आतंकी बनेंगे, या आतंकवादी घटनाओं में शामिल होंगे, तो यह तो ठीक वही बात हुई,कि बाड़ ही अब खेत को खाने लगी है या यूं कहें कि रक्षक ही अब भक्षक बन रहे हैं। वास्तव में, यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि आज व्हाइट कालर आतंकवाद देश के लिए एक चुनौती है।दिल्ली धमाके मामले में अब तक जितने भी संदिग्धों के नाम सामने आए हैं, उनमें से अधिकतर पढ़े-लिखे, पेशेवर लोग हैं। कहने को तो ये पढ़े-लिखे और डिग्रीधारक(डॉक्टर) हैं, लेकिन इनका असली काम आतंकवाद फैलाना और आतंकी गतिविधियों में शामिल होना है। इनके तार दिल्ली, हरियाणा से लेकर जम्मू-कश्मीर तक जुड़े बताए जा रहें हैं, जो दर्शाता है कि  देश में व्हाइट कॉलर आतंकियों का नेटवर्क बढ़ रहा है।अब तक आतंकवाद के प्रमुख कारणों में  राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक और सामाजिक असमानता, धार्मिक या वैचारिक कट्टरता, राजनीतिक उत्पीड़न, विदेशी हस्तक्षेप और जातीय तनाव आदि को माना जाता रहा है। यह माना जाता रहा है कि इन सभी कारकों से समाज में असंतोष और निराशा पैदा होती है, जो लोगों को हिंसक रास्ते या आतंकवाद का रास्ता अपनाने के लिए उकसा सकती है, लेकिन व्हाइट कॉलर आतंकवाद इस धारणा को तोड़ता है। आज एआइ व आधुनिक तकनीक, सोशल मीडिया का जमाना है, और यह संभव है कि सोशल मीडिया के इस आधुनिक युग में कहीं भी दूर बैठे ही, संचार के आधुनिक साधनों/उपकरणों की मदद से इन पेशेवर व पढ़े लिखे लोगों के मन में कट्टरपंथियों/आतंकियों ने जहर भर दिया गया हो। अब हमारे देश के सुरक्षा बलों, हमारी सरकारों, हमें स्वयं और हमारी सभी खुफिया एजेंसियों को सिर्फ आतंकवाद से ही नहीं लड़ना है, बल्कि इसके उन्नत रूप ‘व्हाइट कॉलर आतंकवाद’ से भी लड़ना है। हम यदि मिलकर इस दिशा में काम करेंगे तो कोई दोराय नहीं कि हम इनको(आतंकियों व इनके आकाओं) न पकड़ पाएं। बहरहाल, ऐसा भी नहीं है कि ‘व्हाइट कॉलर आतंकवाद’ का कंसेप्ट कोई नया कंसेप्ट है। पहले भी दुनियाभर में कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जहां आतंकी संगठनों को बौद्धिक या तकनीकी सहायता देने के बाद उच्च शिक्षित युवा खुद भी आतंकी हरकतों को अंजाम देने लगे हैं, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि भारत में भी इस तरह का आतंकवाद अब सामने आने लगा है या यूं कहें कि भारत के खिलाफ इस तरह के आतंकवाद की साज़िश अब रची जाने लगी है, जैसा अब सामने आ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आतंकियों की जो लीडरशिप रही है, अमूमन वह भी उच्च शिक्षित, पेशेवर रही है। उदाहरण के तौर पर आतंकी संगठन अलकायदा का संस्थापक अल जवाहिरी मेडिकल सर्जन था,तो वहीं दूसरी ओर अल-कायदा नामक आतंकी संगठन का संस्थापक और प्रमुख ओसामा बिन लादेन,जो कि दुनिया का सबसे ख़तरनाक अंतरराष्ट्रीय आतंकी माना गया था, साथ ही जो 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमलों का मुख्य साज़िशकर्ता था, तथा जो 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी नेवी सील्स के ऑपरेशन में मारा गया, के पास भी इंजीनियरिंग की डिग्री थी। इसी प्रकार से आइएसआइएस के पूर्व सरगना अबू बकर बगदादी ने भी एक स्कॉलर के रूप में अपनी धाक जमा रखी थी।

यहां पाठकों को बताता चलूं कि, जैसा कि मीडिया में भी यह खबरें आतीं रहीं हैं कि अलकायदा और आइएसआइएस जैसे संगठन तो डॉक्टरों और इंजीनियरों जैसे पेशेवरों की अपने संगठन में भर्ती का विशेष अभियान चलाते रहे हैं। अंत में, यही कहूंगा कि  शिक्षा आतंकवाद के खिलाफ सबसे प्रभावी, दीर्घकालिक और शांतिपूर्ण हथियारों में से एक मानी जाती है, जैसा कि इसका प्रभाव सीधे व्यक्ति के सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता पर पड़ता है। वास्तव में, अशिक्षा और आधी-अधूरी जानकारी आतंकवादी संगठनों का सबसे बड़ा हथियार होती है। शिक्षा तार्किक सोच, वैज्ञानिक दृष्टि और सही-गलत में फर्क समझने की क्षमता विकसित करती है। इससे युवाओं को कट्टरपंथी प्रचार से बचाया जा सकता है। हालांकि, बहुत ही दुखद है कि आज शिक्षित युवा भी नफरत, कट्टरता की राह चुन रहे हैं तो अहम सवाल यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली ने हमारे युवाओं में ज्ञान और समझ, नैतिकता और मूल्यों, अनुशासन और जिम्मेदारी, आत्मविश्वास और व्यक्तिगत विकास, तार्किक सोच,रचनात्मकता और नवाचार, सामाजिकता और नेतृत्व क्षमता, सहानुभूति और संवेदनशीलता और देश प्रेम की कितनी शिक्षा दी? सच तो यह है कि आज इंटरनेट और एआई ने आतंकवाद को नया हथियार दे दिया है। अब आतंकी संगठन सोशल मीडिया और डार्क वेब के जरिए लोगों का ब्रेनवॉश और भर्ती कर रहे हैं, वह भी बिना किसी सीधे संपर्क के। आतंक अब सिर्फ जंगलों या छिपे ठिकानों से नहीं, बल्कि लैपटॉप और मोबाइल से भी चल रहा है, यह बहुत ही घातक है। इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां साइबर फॉरेंसिक, डिजिटल निगरानी और डार्क वेब ट्रैकिंग को और मजबूत करे। विश्वविद्यालयों और सोशल मीडिया कंपनियों को भी इस खतरे के प्रति सतर्क रहना जरूरी है। सरकार, प्रशासन, पुलिस, सेना, सुरक्षा बलों और आम आदमी को तो हर चीज़, ख़तरों के प्रति जागरूक और सचेत रहना ही होगा।

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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