
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि “रेणु जी का संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता. अंतिम समय में वे रोग से भी लड़ते रहे. उनके व्यथापूर्ण जीवन ने हीं उनकी कलम को शक्ति दी.”
वहीँ डा. शंकर प्रसाद ने अपने संस्मरणों के ज़रिए रेणु जी के विराट व्यक्तित्व को चित्रित किया. यह बताया कि उनकी कथाओं पर फ़िल्मे भी बनी. ‘तीसरी क़सम’ उनकी कहानी पर बनी अत्यंत लोकप्रिय फ़िल्म थी.


इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में कहानीकार अमियनाथ चटर्जी ने “मीट”, डा. मेहता नगेंद्र सिंह ने ‘वृक्ष ने कहा था’, शिवदत्त मिश्र ने ‘असफल चोर’, डा. शंकर प्रसाद ने ‘आदम-गोश्त की महक’, डा. सुलक्ष्मी कुमारी ने ‘रिश्ते’, डा. सीमा यादव ने ‘वरद-हस्त’, ओम प्रकाश पांडेय ‘प्रकाश’ ने ‘सबक़’, ऋषिकेश पाठक ने ‘पश्चाताप’, चितरंजन भारती ने ‘आम जनता के लिए’, शालिनी पाण्डेय ने ‘बेटी’, राज कुमार प्रेमी ने ‘धोखेबाज़’, पंकज प्रियम ने ‘कब होगा सवेरा’, शैलेंद्र झा ‘उन्मन’ ने ‘ममता और धैर्य’ तथा राकेश सिंह ‘सोनू’ ने ‘फीकी चाय’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया.
कवयित्री आराधना प्रसाद, अरविंद ठाकुर, नंदिनी प्रियम, लता प्रासर, जय प्रकाश पुजारी, अश्विनी कुमार, कृष्ण मोहन प्रसाद, राम किशोर सिंह ‘विरागी’ तथा डा. राम ईश्वर प्रसाद समेत अनेक साहित्य सेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे. मंच का संचालन सम्मेलन के अर्थ मंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया.