मंदिर की देवी पूज्यनीय, समाज की देवी निंदनीय क्यों ?

मंदिर की देवी पूज्यनीय, समाज की देवी निंदनीय क्यों ?
नवरात्र पर विशेष
By : Rakesh Singh ‘Sonu’
एक बार फिर माहौल हैदुर्गापूजा का, समाज का हर वर्ग पूरी श्रद्धा से देवी को खुश करने का जतन करेगा. लेकिन एक सवाल यह है कि क्यों देवी की पूजा करनेवाला पुरुष प्रधान समाज पूजा खत्म होते ही समाज की देवियों को पहले की तरह प्रताड़ित करना शुरू कर देता है ? नवमी के दिन बच्चियों को नवदुर्गा मानकर उन्हें पूजनेवाले समाज में फिर क्यों मासूम बच्चियां हवस का शिकार बनायीं जाती हैं ? इस मुद्दे परबोलो ज़िन्दगीने बात की कुछ प्रतिष्ठित महिलाओं एवं पुरुषों से कि कैसे सुधरेगा समाज का यह दोहरा रूप ?

नारियों की प्रताड़ना की वजह पुरुषों की बीमार सोच है : देवी, लोक गायिका – देवी पूजा तो लोग धार्मिक भावना से करते हैं. मगर महिला होने के कारण जो प्रताड़ना वो अक्सर पुरुषों द्वारा झेलती हैं, वह पुरुषों की बीमार मानसिकता के कारण होता है. पुरुष अपने अहंकार से आहत होने पर शारीरिक रूप से कमजोर स्त्री को सताता है. यौन कुंठाओं के कारण बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देता है. भारत में बेटा और बेटी के बीच अंतर माना जाता है. यह विडंबना है कि हमारे शास्त्र तो नारी की पूजा करने को कहते हैं, पर पुरुष स्वयं को नारी का मालिक समझता है. घर में बहन ही हमेशा भाई को खाना परोस के खिलाती है. ऐसा कभी नहीं होता कि भाई भी अपनी थकी-हारी बहन को खाना परोसकर खिलाये. घर की बुजुर्ग महिलाएं भी लड़कियों को दबकर रहने की शिक्षा देती रहती हैं. इससे एक खुला और स्वतंत्र संवाद नहीं हो पाता. महिलाएं जब शिक्षित होंगी, जागरूक होंगी, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी तभी महिलाओं की दशा सुधर पायेगी.

घर में बदलाव होगा तभी समाज बदलेगा : रतन राजपूत, अभिनेत्री समाज में हर साल होनेवाली देवी पूजा एक प्रथा है जो बरसों से चली रही है. ऐसा हमारी सभ्यतासंस्कृति की याद बनाये रखने के लिए भी आवश्यक है. इसके साथ ही यह एहसास भी कराता है कि समाज की देवियां भी शक्ति यानी नवदुर्गा की प्रतीक हैं. हिन्दू धर्म के तहत अगर हम ईश्वर की बात करें तो शिव, विष्णु और कृष्ण भी पार्वती, लक्ष्मी एवं राधा के बिना अधूरे हैं. ऐसे में समाज की बात करें तो महिलाओं के दुर्व्यवहार के लिए सारे पुरुष प्रधान समाज को दोषी नहीं ठहरा सकतें. क्यूंकि समाज में कोई लड़का अगर रेप करता है तो वहीँ दूसरी तरफ बहुत से ऐसे पुरुष भी हैं जो पीड़ित हो रही नारियों को बचाते हैं. उनके हक़ के लिए लड़ते हैं. जहाँ तक समाज की देवियों की बात है तो जब एक सास अपनी बहू को जलाकर मार डालती है तो ऐसे में हम सिर्फ पुरुषों को दोष कैसे दें ? समाज की देवियों के जीवन में बदलाव तभी आएगा जब मर्द हो या औरत सभी अपनी सोच बदलेंगे. यहाँ समस्या यह है कि लोग समाज में तो नुक्स निकालने लगते हैं मगर अपने घर के अंदर की बुराई उन्हें नज़र नहीं आती. जब तक लोग अपने घरपरिवार में बदलाव नहीं लाएंगे तब तक समाज भी नहीं बदलेगा. सिर्फ बच्चों को पैदा कर देना ही माँबाप का कर्तव्य नहीं है, बल्कि वो क्या सोच रखते हैं, किस रास्ते पर चल रहे हैं यह देखना भी उनका कर्तव्य बनता है. ताली एक हाथ से तो नहीं बजती, इसलिए मैं एकतरफा पुरुष प्रधान समाज को इसके लिए दोषी नहीं मान सकती.

देवी शक्ति पाकर तो पुरुषों को नारियों की रक्षा करनी ही चाहिए : ब्रजभूषण, फिल्म निर्देशक  दशहरा के पावन अवसर पर सम्पूर्ण देश के पुरुष, नारी की पूजा यहाँ तक की कुंवारी कन्याओं की पूजा तक में अपना समर्पण और श्रद्धा भाव रखते हैं. लेकिन दुःख होता है कि फिर दशहरा समाप्त होते ही पूरे वर्षभर पुरुष उसी नारी को रसोई और बिस्तर के गणित से परे सोच नहीं पाते. उसी देवी की आराधना उपरांत शक्ति पाकर पुरुष में वासना, शोषण, हिंसा, ईर्ष्या और आधिपत्य के इरादे उपज जाते हैं. वे एसिड फेंकने, बलात्कार, अपहरण एवं हत्या जैसे दुष्कर्मों से भी नहीं हिचकते. देवी शक्ति पाकर तो पुरुष को चाहिए नारी को वर्षभर ऐसा प्रेम दे जो मुक्ति के आकाश में जन्मा हो, जिसमे स्वतंत्रता की साँसें हों, विश्वास का प्रकाश हो, करुणा की धार हो. ताकि घर से लेकर कार्यस्थल तक हर जगह वे सुरक्षित हों. खाकी वर्दी हो चाहे संसद और न्यायपालिका में बैठे देश के कानून के निर्माता, सबों पर नारी भरोसा कर सके.

समाज में काम करने की मशीन बनकर रह गयी हैं महिलाएं : पद्मश्री सुधा वर्गीज, समाजसेविका हमारी संस्कृति हमें हरेक महिला को देवी का दर्जा दिलवाती है. हमारे समाज के कवि, ज्ञानी समाज की महिलाओं को देवी कहते हैं. लेकिन जब हकीकत पर निगाह डालते हैं तो इन बातों की सार्थकता कम हो जाती है. महिलाएं बंधन में नजर आती हैं. वे मानसिक रूप से भी स्वतंत्र नहीं दिखती. उनके जीवन में इतना ज्यादा बंधन है कि वो सिर्फ काम करने की मशीन बनकर रह गयी हैं. घर, बच्चों और पति को सँभालने में ही उनकी ज़िन्दगी गुजर जाती है. देवी की पूजा करना बहुत आसान है मर्दों के लिए. वे देवी को खुश करने के लिए कुछ भी करेंगे. लेकिन घर की साक्षात नज़र आनेवाली देवियों को नहीं पूछेंगे. जब तक घर और मंदिर की दोनों देवियों में समाज में बैलेंस नहीं होगा तब तक सुधार नहीं होगा. ऐसा लगता है हमलोग बहुत ढोंगी हैं. सिर्फ डर से भक्ति भावना दिखाते हैं. इसलिए पूजा शुरू होते ही फिर वही वहशीपना. हमारी श्रद्धा नहीं है पूजा में. समाज के पुरुषजन पत्नी को लात मारेंगे लेकिन देवी के सामने नतमस्तक हो जायेंगे.
हमें नारी शक्ति को स्वीकारना होगा : रंजीत श्रीवास्तव, संस्थापक, सशक्त नारी सम्मान समारोह 
हमारा पुरुष प्रधान समाज समृद्ध और उन्नत तो है लेकिन उसकी सोच महिलाओं के प्रति उन्नत एवं सराहनीय नहीं है. हम अपने जीवन को सौभाग्यशाली बनाने के लिए सरस्वती की , धन और ऐश्वर्य के लिए लक्ष्मी की, शक्ति और स्वास्थ्य के लिए दुर्गा की यानी नारी की ही पूजा करते हैं. यानी हमारा जीवनचक्र नारी शक्ति पर आश्रित है. बस इसी सच्चाई को पुरुष प्रधान समाज नहीं मानना चाहता. और जब तक हम सच्चाई को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक महिलाओं के साथ दुर्यव्यवहार का सिलसिला थमेगा नहीं. हमें उदारवादी होना होगा. और एक नयी सोच के साथ एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा, जहाँ महिलाओं को वास्तविक रूप में देवी का दर्जा प्रदान किया गया हो.

 

 
समाज मूर्ति को देवी मानता है लेकिन नारी को शक्ति नहीं : नवनीत शर्मा, वरीय रंगकर्मी  – पुरुष प्रधान समाज की विकृति ये है कि उन्होंने मूर्ति को देवी तो माना है लेकिन नारियों को पत्नी, बेटीबहन को देवी नहीं माना है. जबकि वस्तुस्थिति उलटी है, आज पत्नी ही घर की वास्तविक देवी है क्यूंकि वही घर को वैभवशाली एवं समृद्धशाली बनाती है. मुझे लगता है इस संदर्भ में पुरुष के पास दृष्टि ही नहीं है जो देख सके कि हकीकत क्या है. दूसरी बात यह कि यहाँ पुरुषों का अहम सामने जाता है. उन्होंने देवी को ठीक से समझा ही नहीं है, क्यूंकि अगर समझते तो फिर महिलाओं पर यूँ शोषण नहीं होता. यही वजह है कि उन्हें सिद्धि नहीं मिलती. अगर उनका भावविचार शुद्ध होता तो उन्हें समाज की महिलाओं में भी देवी नज़र आती. अगर वे समाज की नारियों को देवी का दर्जा दें तभी उनकी यह पूजा भी सफल होगी.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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