बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : वागीशा झा की फैमिली, खगौल, पटना 

बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक : वागीशा झा की फैमिली, खगौल, पटना 
स्पेशल गेस्ट के साथ बोलो ज़िन्दगी की टीम

2 सितंबर, सोमवार की शाम ‘बोलो ज़िन्दगी फैमली ऑफ़ द वीक’ के तहत बोलो ज़िन्दगी की टीम (राकेश सिंह ‘सोनू’, तबस्सुम अली एवं प्रीतम कुमार) पहुंची खगौल इलाके में गायिका वागीशा झा के घर. फैमली ऑफ़ द वीक में हमारे स्पेशल गेस्ट के रूप में श्री सच्चा कला केंद्र संस्था की सचिव श्रीमती जनककिशोरी जी भी शामिल हुईं. इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर्ड किया है बोलो जिंदगी फाउंडेशन ने जिसकी तरफ से हमारे स्पेशल गेस्ट के हाथों वागीशा की फैमली को एक आकर्षक गिफ्ट भेंट किया गया.

 

 

 

फैमली परिचय– गायिका वागीशा झा जेडी वीमेंस कॉलेज में म्यूजिक में पीजी सेकेण्ड सेमेस्टर की स्टूडेंट. 24 मई 2019 को इनकी शादी हुई है. इनके हसबैंड मि. पारस कुमार झा मुंबई में केमिकल इंजिनियर हैं. वागीशा का मायका और ससुराल दोनों ही पटना के खगौल में है. ससुराल में दो ननदें हैं जिनकी शादी हो चुकी है. सासु माँ हैं, एक देवर हैं जो दिल्ली में जॉब करते हैं. वागीशा दो भाई-बहन हैं. इनके भैया मि. देशबंधु कुमार गुड़गांव में जॉब करते हैं. वागीशा के पापा श्री जयमुकुंद झा बिजली विभाग में कार्यरत हैं और मम्मी श्रीमती नीतू देवी गृहणी हैं.

 

वागीशा और उनके फैमिली मेंबर का टैलेंट – वागीशा के पापा तबला, नाल और हारमोनियम बजाने के साथ-साथ गाने भी बहुत अच्छा गाते हैं. वागीशा की मम्मी और सासु माँ भी संस्कार गीत गाती हैं. इनके पति पारस कभी बहुत अच्छा क्रिकेट खेला करते थें. कई बार स्टेट लेवल अवार्ड जीते हैं. परिस्थितियां ऐसी बनी कि पिता जी के बहुत जल्दी खो दने के बाद घर-परिवार की सारी जिम्मेदारियां उनके कंधों पर आ गयीं. वागीशा की सासु माँ ने बेटे से बोला भी था कि “क्रिकेट में मन लगता है तो तुम क्रिकेट में ही जाओ”. लेकिन पारस सिचुएशन देखते हुए पढ़ाई फिर जॉब में ज्यादा मन लगाने लगें.

बोलो ज़िन्दगी के साथ अपना संस्मरण साझा करती हुईं वागीशा झा

वागीशा के संगीतमय सफऱ की कहानी – वागीशा जब डीएवी खगौल में पढ़ती थी तो स्कूल में सलेक्टेड लोगों को मौका मिलता था और तब वे दरवाजे के पास से देखती थी. क्लास में जब कोई पीरियड नहीं होता था तो सबको गाना सुनाती थी. क्लास में टीचर लोग आतीं तो जब उन्हें पढ़ाने का मन नहीं होता या स्टूडेंट्स को पढ़ने का मन नहीं होता तो वे बोलतीं कि जिसमे जो टैलेंट है वो प्रस्तुत करे. तब सब स्टूडेंट वागीशा का नाम लेकर बोलतें कि बहुत अच्छा गाती है. फिर टीचर इनको बुलातीं गाना सुनाने के लिए. फिर धीरे-धीरे लोगों को पता चला और तभी से स्कूल के सारे प्रोग्राम में गाने लगी. कॉलेज में भी कुछ मौके मिलें. स्टेज का पहला अनुभव खगौल में मिला. एक थें बिनू अंकल जो रेलवे में ऑफिसर थें, जिन्हे म्यूजिक से बहुत लगाव था और वे वागीशा के घर के बगल में रहते थें . सन्डे को उनके घर पर प्रैक्टिस होता था. वागीशा वहां जाती तो अंकल सिखाते थें. एक दफा खगौल में ही जागरण हो रहा था उसमे बिनू अंकल ने ही वागीशा को पहला ब्रेक दिया.  वागीशा का जन्म भले ही सहरसा में हुआ लेकिन खगौल से ज्याद लगाव था. क्यूंकि यहीं से ये चलना शुरू की थीं. पापा बिजली विभाग में थें तो उन्हें हर कोई जाननेवाला था. इसलिए तब वागीशा बहुत ज्यादा एक्साइटेड थी कि क्या पहनेंगी, सबलोग देखेंगे. इस तरह उनका पहला स्टेज परफॉर्मेंस खगौल से ही शुरू हुआ.

संगीत विरासत में मिला – वागीशा के पापा बचपन से ही गाते थें मगर उस वक़्त उनके पैरेंट चाहते थें कि पढ़ाई-लिखाई करें और सेटल हो जाएँ. लेकिन इनके पापा को म्यूजिक में बहुत इंट्रेस्ट था लेकिन उन्हें सपोर्ट नहीं मिल पाया. जब वागीशा जन्म ली तो उनके पापा वागीशा में वो ख्वाब देखने लगें. जब वागीशा 5 साल की हुई तो थोड़ा बहुत गुनगुनाने लगी जिसे देखकर पापा-मम्मी को लगा कि ये गायेगी, फिर पापा हारमोनियम पर बैठाकर सारेगामापाधानिशा सिखाना शुरू कर दिए. वागीशा के पहले गुरु इस तरह उनके पापा बन गएँ.

 

अचीवमेंट – संगीत में गोल्ड मेडलिस्ट हैं और दो-बार इनको गोल्ड मैडल मिला, 2013 और 2015 में. 2013 में मधुबनी में हुए युवा महोत्सव में स्टेट लेवल टॉपर भी बनीं. अभी 2019 में बिहार गौरव सम्मान से भी सम्मानित हुईं. वागीशा पटना में 2016 में कराओके सिंगिंग स्टार में फर्स्ट रनरअप चुनी गयीं, 2017 में सारेगामापा रंग पुरवैया में टॉप 12 तक गयी. रेडियो मिर्ची सिंगिंग कम्पटीशन में फर्स्ट रही, पीटीएन चैनल के ‘स्वर-झंकार’ में फर्स्ट आयीं, जिसमे लोकगायिका देवी द्वारा 51 हज़ार रुपए इनाम में मिलें. इसके बाद सरस मेला, बसंत उत्सव, सावन महोत्सव, सोनपुर मेला, एक शाम शहीदों के नाम जैसे समारोहों में अपनी गायिकी का जादू चलाया.

 

फोक में दिलचस्पी कब से बढ़ी ? – चांदनी फेम प्लेबैक सिंगर जॉली मुखर्जी जब धूम-3 का कमली-कमली इनका गाना सुने थें तो उन्होंने कहा था – “तुम्हारी आवाज बिल्कुल फोक के लिए बनी हुई है. तुम फोक पर फोकस करो. तब देखना तुम बहुत आगे जाओगी.” उस दिन से ही सही मायने में वागीशा ने फोक गाना शुरू किया.

फोक के आलावा ये सूफी, सुगम संगीत, फ़िल्मी गीत भी गाती हैं. लोकल म्यूजिक एलबमों में बहुत काम किया है लेकिन अब तमन्ना है राष्ट्रिय स्तर की म्यूजिक कंपनियों में गाने की. इस बाबत वागीशा कहती हैं “लेकिन वहां मैं अपनी कला की वजह से जाना चाहती हूँ ना कि किसी पैरवी-पहुँच से.”

 

बोलो जिंदगी के डायरेक्टर राकेश सिंह ‘सोनू’ अपनी गीत-गजल की पुस्तक “तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे?” वागीशा झा को भेंट करते हुए

 

जब बोलो ज़िंदगी की टीम वागीशा के ससुराल पहुंची तो वहां इनके पति पारस भी मुंबई से आये हुए थें. वागीशा की सासु माँ और उनके मम्मी-पापा भी मौके पर मौजूद थें. तब बोलो जिंदगी की फरमाईश पर वागीशा के साथ-साथ उनके पापा श्री जयमुकुंद झा ने भी गीत गाकर सुनाया.

 

विदा लेते वक़्त बोलो ज़िन्दगी के निदेशक राकेश सिंह ‘सोनू’ ने वागीशा को अपनी पहली गीत-गजल संग्रह की पुस्तक “तुम्हें सोचे बिना नींद आये तो कैसे ?” भेंट की.

 

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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