बेजुबां है वो मगर बोलती है पेंटिंग

तारे ज़मीं पर
By: Rakesh Singh ‘Sonu’



“हर मुश्किल सवाल का जवाब हूँ मैं 
सुनी अँखियों का ख्वाब हूँ मैं 
हुनर की बोलती किताब हूँ मैं “

– शुभ्रा सिन्हा

14  नंबर, 2015 , बाल दिवस की शाम पटना के बिहार बाल भवन किलकारी में जिन 18  प्रतिभावान बच्चों को ‘बाल श्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया उनमे से एक थी शुभ्रा सिन्हा जिन्हे पेंटिंग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सराहा गया. वह बोल सुन नहीं सकती लेकिन अपने बनाए पेंटिंग के जरिए वो इतना कुछ कह जाती है कि फिर बोलने की ज़रूरत महसूस नहीं होती. छोटी पहाड़ी, अगमकुआं,पटना में रहनेवाली 11 वीं की यह मूक-बधिर छात्रा वैसे तो भाई-बहनों में छोटी है और इतनी कम उम्र में जिसके नाम हैं दर्जनों अवार्ड एवं एकल पेंटिंग प्रदर्शनियां. पुस्तक मेला 2012 -2013 , बिहार दिवस 2013 , गाँधी संग्रहालय 2012 , राजगीर महोत्सव 2012 , इन प्रमुख जगहों पर शुभ्रा की एकल पेंटिंग प्रदर्शनियों ने धूम मचाई है. दर्जनों अवार्ड अपने नाम कर चुकी शुभ्रा की गिनती तब राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी जब उसने दिसंबर 2013  में केंद्रीय जल बोर्ड द्वारा आयोजित पेंटिंग कम्पटीशन में तृतीय पुरस्कार जीता.  1  अक्टूबर 2015  ( सशक्त नारी सम्मान समारोह) पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के स्टेज पर सम्मानित हो रही महिलाओं के बीच इस बच्ची को पुरस्कार पाते देख कितनो की आँखें चौंक पड़ी थीं. लेकिन कहते हैं ना कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती.
    शुभ्रा की माँ श्रीमती बिन्दा सिन्हा बताती हैं कि जब शुभ्रा ढ़ाई साल की थी तभी एहसास हुआ कि जिधर आवाज आती है वो उधर देख नहीं पा रही. तब डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि बोलने-सुनने में दिक्कत है. फिर 7-8  साल की उम्र में जीभ का ऑपरेशन कराए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. स्पीच थेरेपी और ईयर मशीन की वजह से कुछ वर्ड बोल सुन पाती है लेकिन बहुत असुविधा होती है. पढ़कर भी वाक्य और शब्दों को ठीक से नहीं समझ पाती लेकिन ईशारों की भाषा आसानी से समझ लेती है. बहुत छोटी उम्र में ही अख़बार में कार्टून देखकर शुभ्रा खुद से बनाने लगी. बड़ी बहन को ड्राइंग क्लास में जो होमवर्क मिलता उसे शुभ्रा कम्प्लीट करती और दीदी से भी बहुत अच्छी पेंटिंग बनाने लगी. सन्डे-के-सन्डे मोहल्ले में संतोष मेकर जी एक प्रशिक्षण केंद्र चलाते थे जहाँ बड़ी बहन के कहने पर शुभ्रा को पेंटिंग सीखने भेजा जाने लगा. साथ में छोटा भाई भी जाता जो शुभ्रा और टीचर के बीच संवाद स्थापित कराता था .

2012 में पहली बार पटना पुस्तक मेले के ऑर्गनाइजर रत्नेश जी के सहयोग से शुभ्रा की एकल पेंटिंग प्रदशनी मेले का आकर्षण बनी और शुभ्रा को विशेष अवार्ड भी मिला. तभी पहली बार विभिन्न अख़बारों में शुभ्रा की कलाकारी को स्थान मिला. उसकी पेंटिंग प्रदशनी देखकर फ्रेम बॉक्स एकेडमी वालों ने उसे स्कॉलरशिप सर्टिफिकेट दिया और 10  वीं के बाद एनीमेशन का मुफ्त प्रशिक्षण देने की बात कही. डॉ. राजेंद्र प्रसाद संग्रहालय में राजेंद्र प्रसाद के पोते डॉ. बी.के. सिंह ने शुभ्रा द्वारा राजेंद्र प्रसाद की बनायीं पेंटिंग खरीदकर लगा राखी है. यही नहीं एक अमेरिकी एन.आर.आई भी शुभ्रा की पेंटिंग खरीदकर ले जा चुके हैं. पेंटिंग के अलावे शुभ्रा को डांसिंग,कंप्यूटर चलाना, टीवी पर कार्टून व कॉमेडी फ़िल्में देखना भी पसंद है . शुभ्रा के पिता बताते हैं कि “राजगीर महोत्सव में लगी शुभ्रा की पेंटिंग प्रदर्शनी देखकर 2012  में आरा के एक प्राइवेट स्कूल से शुभ्रा के लिए पेंटिंग टीचर का ऑफर भी आया था. लेकिन आने जाने और परिवार की दिक्कतों की वजह से मैंने मना कर दिया था.” माँ कहती हैं, “शुरुआत में दोनों बच्चों की तुलना में शुभ्रा पर उतना ध्यान नहीं दे पाती थीं लेकिन इसने खुद को अपने टैलेंट से साबित कर दिखाया. बेटी की वजह से ही व्यावसायिक और अध्यात्मक जीवन में हमलोगों की भी पहचान होती है. शुभ्रा की बदौलत कई आई.ए.एस. अफसरों एवं बड़े कलाकारों से मिलकर हमें भी अपनी बेटी पर फख्र होता है.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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