पैर नहीं हैं फिर भी अपने हौसलों के बल पर दौड़ते हैं राजीव

पैर नहीं हैं फिर भी अपने हौसलों के बल पर दौड़ते हैं राजीव

 

उसके पैर नहीं हैं, फिर भी वह दौड़ता है. उसकी पढ़ाई अधूरी रह गयी, बावजूद इसके वह बड़ी आसानी से जिंदगी के फलसफे पढ़ लेता है. उसने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखें. उसे कहीं से कोई खास मदद नहीं मिल पायी. फिर भी आज वह आत्मनिर्भर है.

बात हो रही है वैशाली जिले के वितंडीपुर निवासी 27 वर्षीय राजीव की. राजीव जब गांव में तीसरी कक्षा की पढ़ाई कर रहे थें, उसी दौरान स्कूल जाने के क्रम में एक ट्रक ने उन्हें कुचल दिया. इस हादसे में उनकी जान तो बच गयी लेकिन वे अपने दोनों पैर गँवा बैठें. फिर राजीव ने किसी तरह से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. आज वह वेस्ट बोरिंग केनाल रोड में सीडी कैसेट्स की दुकान चलाते हैं. इसके साथ-साथ वह म्यूजिक, मूवी डाउनलोडिंग और मोबाईल रिपेयरिंग का भी काम करते हैं.

एक वक्त था कि हादसे के बाद घरवालों को लगा कि अब राजीव का क्या होगा? चिंता सताने लगी कि जिंदगी भर के लिए ये बोझ बनकर रह जायेगा… लेकिन आज कहानी विपरीत है. तब राजीव के लिए वो हादसा बहुत बड़ा सदमा था और वो जानते थें कि अब जीना आसान नहीं है. फिर भी राजीव ने कभी हिम्मत नहीं हारी और आज वे ना सिर्फ आत्मनिर्भर हैं बल्कि अपने घर-परिवार को भी सहयोग कर रहे हैं.
2002 में उस हादसे के बाद राजीव का लम्बा इलाज चला. करीब तीन-चार महीना हॉस्पिटल में रहें. घाव सूखने में करीब दो साल का वक़्त लग गया. उसके बाद राजीव ने सोचा घर पर बैठे-बैठे क्या करूँ, फिर पाँचवी कक्षा में एडमिशन कराये और घर पर ही पढ़ना स्टार्ट किए. आगे चलकर जब 7वीं- 8वीं में गए तो खुद पढ़ने के साथ-साथ गांव के बच्चों को भी पढ़ाने लगें.

 

2008 में राजीव पटना चले आएं. चूँकि राजीव के पिताजी राजमिस्त्री का काम करते थें तो पटना में उन्होंने जिस व्यक्ति का मकान बनाया था, उनके पास एक ड्राइवर भइया रहते थें. उन्हीं के साथ राजीव भी रहने लगें. वहां रहकर खुद खाना बनाते और पढ़ाई करते थें. साइड से मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना भी शुरू किये. फिर थोड़ा बहुत कंप्यूटर का नॉलेज लिए. तब उनके पास पैसे नहीं थें तो पिताजी ने ही 1000 -1500 में एक नॉर्मल ट्राई-साइकल खरीदकर दे दिए. लेकिन बाद में वह साइकल टूट गयी. तब फुलवारीशरीफ जाकर राजीव टीवी-रेडियो बंनाने का काम सीखते थें फिर वहां से रिटर्न आकर मोबाईल का काम सीखते थें फिर वहां से आने के बाद अपना पेट चलाने के लिए बाकरगंज में काम करने जाते थें. वहाँ 40 रुपया रोज यानि 1200 महीना मिलता था. उसी दौरान उनके एक दिव्यांग मित्र ने राजस्थान के एक संस्था भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति की जानकारी दी. जहाँ से राजीव मुफ्त में ट्राई सायकिल ले आएं जो बहुत मजबूत होता है और काफी साल चल जाता है. फिर 2010 में गायघाट के पास के एक कॉल सेंटर में राजीव को काम मिला लेकिन 6-7 महीना काम करने के बाद पता चला कि वह एक फ्रॉड कम्पनी है और फिर राजीव का वहां 4000 रुपया भी फंस गया. तब वहां से काम छोड़कर वे खुद का बिजनेस शुरू किये. खुद के ही कमाए पैसों से राजीव ने कम्प्यूटर खरीदा और फिर प. बोरिंग केनाल रोड में सीडी कैसेट्स, चायनीज मोबाइल रिपेयरिंग और मूवी-म्यूजिक डाउनलोडिंग का काम स्टार्ट कर दिया.

पिछले साल ही सावन महीने में इनकी शादी हुई है लेकिन इनकी पत्नी दिव्यांग नहीं है. वे बहुत ही गरीब परिवार से आती हैं और पढ़-लिख भी नहीं पाई हैं. जब राजीव के बड़े भाई ने इनका रिश्ता तय कर दिया तो राजीव को यह डर सताने लगा कि वो लड़की तो नॉर्मल है, इनकी तरह दिव्यांग नहीं है, कहीं शादी बाद उसकी तरफ से कोई ऑब्जेक्शन ना हो जाये… इसी दुविधा को लेकर राजीव ने एक बार लड़की से खुद मिलकर उसकी मर्जी जाननी चाही. जब लड़की ने कहा “मुझे कोई आपत्ति नहीं है” तब राजीव पूरी तरह से संतुष्ट हो गए और अब वो लड़की इनकी धर्मपत्नी है. फिलहाल राजीव की पत्नी गाँव पर इनके माँ-बाप के साथ रहती है और हफ्ते-पन्द्रह दिन पर एक-दो दिन के लिए राजीव गाँव चले जाते हैं. इनके एक भइया अपनी फैमली के साथ पटना के राजापुर में रहते हैं तो राजीव सुबह 7 बजे एक घण्टे के लिए उनके घर पर जाते हैं और नहा-खाकर फिर अपने दुकान पर चले आते हैं. उसके बाद वे पूरा दिन वहीं रहकर काम करते हैं और रात को अपनी ही दुकान में ही सो जाते हैं. हाल ही में छोटे भाई की शादी में भी राजीव ने आर्थिक मदद की और हमेशा घर-परिवार में रूपए-पैसे से मदद करते रहते हैं.
राजीव कहते हैं “जब हॉस्पिटल में थें तो मुझे देखकर कुछ लोग बोलते कि यह क्यों जिन्दा रह गया, मर जाता तो वही अच्छा होता…. उस वक़्त सुनकर बहुत बुरा लगता था लेकिन जब हम अपने गांव वापस आएं तो घरवालों का सपोर्ट मिला, वे उत्साह भी बढ़ाते थें. फिर मैंने निश्चय किया कि मैं जीऊंगा और खुद के बल पर आगे बढूंगा.”

‘बोलो ज़िन्दगी’ के साथ अपने संस्मरण साझा करते राजीव

 

 

आज राजीव एक मिसाल हैं युवापीढ़ी के लिए. और उन युवाओं के लिए एक सबक भी जो जरा से बुरे हालातों में ही टूटकर बिखर जाते हैं, आत्महत्या कर लेते हैं बिना यह जाने-समझे कि यही जिंदगी वक़्त आनेपर फिर से खूबसूरत भी हो सकती है. अगर ‘बोलो जिंदगी’ आज राजीव का इंटरव्यू उन्हें दिव्यांग समझकर कर रहा है तो यह उसकी नज़रों का फेर है क्योंकि राजीव ने तो बहुत पहले ही अपने हौसलों की उड़ान से अपनी दिव्यांगता को मात दे दी है.

About The Author

'Bolo Zindagi' s Founder & Editor Rakesh Singh 'Sonu' is Reporter, Researcher, Poet, Lyricist & Story writer. He is author of three books namely Sixer Lalu Yadav Ke (Comedy Collection), Tumhen Soche Bina Nind Aaye Toh Kaise? (Song, Poem, Shayari Collection) & Ek Juda Sa Ladka (Novel). He worked with Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara (Patna), Delhi Press Bhawan Magazines, Bhojpuri City as a freelance reporter & writer. He worked as a Assistant Producer at E24 (Mumbai-Delhi).

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